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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
स्पर्श, रस, रूप और गंध दिया था ऐसा चिन्तन करने से, मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप, और गंध का यह अपहरण करता है ऐसा चिन्तन करने से, इससे मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध दिया जाता है ऐसा चिन्तन करने से, मेरे मनोज्ञ शब्द स्पर्श, रस, रूप और गंध का यह अपहरण करेगा ऐसा चिन्तन करने से, यह मुझे अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध देगा - ऐसा चिन्तन करने से, मेरे मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का इसने अपहरण किया था, करता है या करेगा- ऐसा चिन्तन करने से, इसने मुझे अमनोज्ञ शब्द- यावत् गंध दिया था, देता है या देगा - ऐसा चिन्तन करने से, इसने मेरे मनोज्ञ शब्द- यावत्-गंध अपहरण किया, करता है या करेगा तथा इसने मुझे अमनोज्ञ शब्द- यावत् गंध दिया, देता है या देगा ऐसा चिन्तन करने से, मैं आचार्य या उपाध्याय की आज्ञानुसार आचरण करता हूं किन्तु वे मेरे पर प्रसन्न नहीं रहते हैं ।
[८९४] संयम दश प्रकार का है, यथा- पृथ्वीकायिक जीवों का संयम यावत्वनस्पतिकायिक जीवों का संयम, बेइन्द्रिय जीवों का संयम, तेइन्द्रिय जीवों का संयम, चउरिन्द्रिय जीवों का संयम, पंचेन्द्रिय जीवों का संयम, अजीव काय संयम ।
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असंयम दश प्रकार का है, यथा- पृथ्वीकायिक जीवों का असंयम यावत्वनस्पतिकायिक जीवों का असंयम, बेइन्द्रिय जीवों का असंयम यावत्-पंचेन्द्रिय जीवों का असंयम और अजीवकायिकअसंयम ।
संवर दस प्रकार का है, यथा- श्रोत्रेन्द्रिय संवर- यावत् - स्पर्शेन्द्रिय संवर, मनसंवर, वचनसंवर, कायसंवर, उपकरणसंवर और शुचिकुशाग्रसंवर ।
असंवर दस प्रकार है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय असंवर- यावत् - स्पर्शेन्द्रिय असंवर, मन असंवर, वचन असंवर, काय असंवर, उपकरणअसंवर और शुचिकुशाग्र असंवर ।
[८९५] दस कारणों से मनुष्य को अभिमान उत्पन्न होता है, यथा- जातिमद से, कुलमद से- यावत्-ऐश्वर्यमद से, नाग कुमार देव या सुपर्णकुमार देव मेरे समीप शीघ्र आते है इस प्रकार के मद से, सामान्य पुरुष को जिस प्रकार का अवधिज्ञान उत्पन्न होता है उससे श्रेष्ठ अवधिज्ञान और दर्शन मुझे उत्पन्न हुआ है इस प्रकार के मद से ।
[८९६] समाधी दस प्रकार की हैं, यथा- प्राणातिपात से विरत होना, मृषावाद से विरत होना, अदत्तादान से विरत होना, मैथुन से विरत होना, परिग्रह से विरत होना, ईर्या समिति से, भाषा समिति से । एषणा समिति से, आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति से, उच्चार प्रश्रवण श्लेष्म सिंधाण परिस्थापनिका समिति से समाधि होती है ।
असमाधि दस प्रकार की हैं, यथा- प्राणातिपात - यावत् - परिग्रह, ईर्ष्या असमिति - यावत्उच्चारप्रश्रवणश्लेष्मसिंधाणपरिस्थापनिका असमिति ।
[८९७ ] प्रव्रज्या दस प्रकार की हैं, यथा
[८९८] छन्द से - गोविन्द वाचक के समान स्वेच्छा से दीक्षा ले । रोष से - शिवभूति के समान रोष से दीक्षा ले । दरिद्रता से कठिआरे के समान दरिद्रता से दीक्षा ले । स्वप्न सेपुष्पचूला के समान स्वप्नदर्शन से दीक्षा ले । प्रतिज्ञा लेने से धन्नाजी के समान प्रतिज्ञा लेने से दीक्षा ले । स्मरण से - भगवान् मल्लिनाथ के छः मित्रों के समान पूर्वभव के स्मरण से दीक्षा