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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
है, यथा-पापक-अशुभ चिंतन रूप, सावद्य-चोरी आदि निंदित कर्म, सक्रिय कायिकादि क्रिया युक्त, सोपक्लेश-शोकादि पीड़ा युक्त, आश्रवकर-प्राणातिपातादि आश्रव, क्षयकर-प्राणियों को पीड़ित करने रूप, भूताभिशंकन भयकारी ।
प्रशस्त वचनविनय सात प्रकार का है, अपापक, असावध यावत् अभूताभिशंकन अप्रशस्त वचन विनय सात प्रकार का है, यथा-पापक यावत् भूताभिशंकन ।
प्रशस्तकाय विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा-उपयोगपूर्वक गमन, उपयोग पूर्वक स्थिर रहना, उपयोगपूर्वक बैठना, उपयोगपूर्वक सोना, उपयोगपूर्वक देहली आदि का उल्लंघन करना, उपयोगपूर्वक अर्गला आदि का अतिक्रमण, उपयोगपूर्वक इन्द्रियों का प्रवर्तन । अप्रशस्तकाय विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा-उपयोग बिना गमन करना यावत्उपयोग बिना इन्द्रियों का प्रवर्तन ।
लोकोपचार विनय सात प्रकार का कहा गया है, यथा-अभ्यासवर्तित्व-समीप रहनाजिससे बोलनेवाले को तकलीफ न हो, परछंदानुवर्तित्व-दूसरे के अभिप्राय के अनुसार आचरण करना, कार्यहेतु-इन्होंने मुझे श्रुत-दिया है अतः इनका कहना मुझे मानना ही चाहिये । कृतप्रतिकृतिता-इनकी मैं कुछ सेवा करूंगा तो ये मेरे पर कुछ उपकार करेंगे, आर्तगवेषणरुग्ण की गवेषणा करके औषध देना, देश-कालज्ञता-देश और काल को जानना, सभी अवसरों में अनुकूल रहना ।
[६८६] समुद्घात सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणांतिक समुद्धात, वैक्रिय समुद्धात, तैजस समुद्घात, आहारक समुद्घात, केवली समुद्घात । मनुष्यों के सात समुद्घात कहे गये हैं, यथा-पूर्ववत् ।
[६८८] श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में सात प्रवचननिह्नव हुए, यथा-बहुरतदीर्धकाल में वस्तु की उत्पत्ति माननेवाले, जीव प्रदेशिका अन्तिम जीव प्रदेश में जीवत्व माननेवाले, अव्यक्तिका साधु आदि को संदिग्ध दृष्टि से देखनेवाले, सामुच्छिदेका-क्षणिक भाव माननेवाले, दो क्रिया-एक समय में दो क्रिया माननेवाले, त्रैराशिका-जीवराशि, अजीवराशि
और नोजीवराशि । इस प्रकार तीन राशि की प्ररुपणा करने वाले, अबद्धिका-जीव कर्म से स्पष्ट है किन्तु कर्म से बद्ध जीव नहीं है, इस प्रकार की प्ररुपणा करने वाले ।
इन सात प्रवचन निह्ववों के सात धर्माचार्य थे, यथा-१. जमाली, २. तिष्यगुप्त, ३. आषाढ़, ४. अश्वमित्र, ५. गंग, ६. षडुलुक (रोहगुप्त), ७. गाष्ठामाहिल ।
[६८९] इन प्रवचन निह्ववों के सात उत्पत्ति नगर हैं, यथा-श्रावस्ती, ऋषभपुर, श्वेताम्बिका, मिथिला, उल्लुकातीर, अंतरंजिका और दशपुर ।
[६९०] सातावेदनीय कर्म के सात अनुभाव (फल) हैं, यथा- मनोज्ञ शब्द, मनोज्ञ रूप, यावत्-मनोज्ञ स्पर्श, मानसिक सुख, वाचिक सुख । असातावेदनीय कर्म के सात अनुभाव (फल) हैं, यथा- अमनोज्ञ शब्द-यावत्-वाचिक दुख ।
[६९१] मघा नक्षत्र के सात तारे हैं, अभिजित् आदि सात नक्षत्र पूर्व दिशा में द्वार वाले हैं, यथा-अभिजित्, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, खेती ।
___ अश्विनी आदि सात नक्षत्र दक्षिण दिशा में द्वारवाले हैं, यथा-अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु ।