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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[६१५] सात स्वर वाले मनुष्यों के लक्षण - यथा
[६१६] षड्जस्वर वाले मनुष्य को आजीविका सुलभ होती है, उसका कार्य निष्फल नहीं होता । उसे गायें, पुत्र और मित्रों की प्राप्ति होती है । वह स्त्री को प्रिय होता है । [६१७] रिषभ स्वर वाले को ऐश्वर्य प्राप्त होता है । वह सेनापति बनता है और उसे धन लाभ होता है । तथा वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री, और शयन आदि प्राप्त होते हैं । [६१८] गांधार स्वर वाला गीत-युक्तिज्ञ, प्रधान- आजीविकावाला, कवि, कलाओं का प्रज्ञाशील और अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता है ।
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ज्ञाता,
[६१९] मध्यम स्वरवाला - सुख से खाता पीता है और दान देता है ।
[ ६२० ] पंचम स्ववाला - राजा, शूरवीर, लोक संग्रह करने वाला, और गणनायक
होता है ।
है ।
[६२२] निषाद स्वरवाला - चांडाल, अनेक पापकर्मों का करने वाला या गौ घातक होता है ।
[६२३] इन सात स्वरों के तीन ग्राम कहे गये हैं । यथा - षड्ज ग्राम, मध्यम ग्राम, गांधार ग्राम । षड्जग्राम की सात मूर्छनाये होती हैं । यथा
[६२१] धैवत स्ववाला - शाकुनिक, झगडालु, वागुरिक, शौकरिक और मच्छीमार होता
[ ६२४] भंगी, कौरवीय, हरि, रजनी, सारकान्ता, सारसी, शुद्ध षड्जा । [६२५] मध्यम ग्राम की सात मूर्छनायें होती हैं । यथा
[६२६] उत्तरमन्दा, रजनी, उत्तरा, उत्तरासमा, आशोकान्ता, सौवीरा, अभीरू । [६२७] गांधार ग्राम की सात मूर्छनायें हैं । यथा
[६२८] नंदी, क्षुद्रिमा, पुरिमा, शुद्ध गांधारा, उत्तर गांधारा ।
[६२९] सुष्ठुत्तर आयाम, कोटि मातसा ये सात है ।
[६३०] सात स्वर कहां से उत्पन्न होते हैं ? गेय की योनि कौनसी होती है ? उच्छ्वास काल कितने समय का है ? गेय के आकार कितने हैं ?
[ ६३१] सात स्वर नाभिसे उत्पन्न होते हैं, गीत की रुदित योनि है । एक पद के उच्चारण में जितना समय लगता हैं उतना समय गीत के उच्छ्वास का है ।
[ ६३२] गेय के तीन आकार हैं, वे इस प्रकार हैं- मंद स्वर से आरम्भ करे । मध्य में स्वर की वृद्धि करे । अन्त में क्रमशः हीन करे ।
[६३३] गेय के छः दोष, आठ गुण, तीन वृत्त और दो भणितियां इनको जो सम्यक् प्रकार से जानता है वह सुशिक्षित रंग (नाट्य शाला ) में गा सकता है ।
[६३४] हे गायक ! इन छः दोषों को टालकर गाना । भयभीत होकर गाना, शीघ्रतापूर्वक गाना, संक्षिप्त करके गाना, तालबद्ध न गाना, काकस्वर से गाना, नाक से उच्चारण करते गाना ! [६३५] गेय के आठ गुण हैं । यथा- पूर्ण, रक्त, अलंकृत, व्यक्त, अविस्वर, मधुर, स्वर, सुकुमार ।
[६३६] गेय के ये गुण और हैं । यथा - उरविशुद्ध, कंठविशुद्ध और शिरोविशुद्ध जो गाया जाय । मृदु और गभ्भीर स्वर से गाया जाय । तालबद्ध और प्रतिक्षेपबद्ध गाया जाय ।