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स्थान- ७/-/६०२
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गौतम गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- गौतम, गार्ग्य, भारद्वाज, अंगिरस, शर्कराभ, भक्षकाम, उदकात्माभ ।
वत्स गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- वत्स, आग्नेय, मैत्रिक, स्वामिली, शलक, अस्थिसेन, वीतकर्म ।
कुत्स गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- कुत्स, मौद्गलायन, पिंगलायन, कौडिन्य, मंडली, हारित, सौम्य ।
कौशिक गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- कौशिक, कात्यायन, शालंकायण, गोलिकायण, पाक्षिकायण, आग्नेय, लोहित्य |
मांडव्य गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- मांडव्य, अरिष्ट, संमुक्त, तैल, ऐलापत्य, कांडिल्य, क्षारायण ।
वाशिष्ठ गोत्र सात प्रकार का कहा गया है, यथा- वाशिष्ठ, उजायन, कृष्ण, व्याघ्रापत्य, कौण्डिन्य, संज्ञी, पाराशर
[६०३] मूलनय सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ एवंभूत ।
[६०४] स्वर सात प्रकार के कहे गये हैं, यथा
[६०५] षड्ज, रिसभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद । षड्ज - १. नासा, २. कंठ, ३. हृदय, ४. जीभ, ५. दाँत, और तालु इन छः स्थानों से उत्पन्न होने वाला स्वर । रिषभ - बैल (साँड़) के समान गंभीर स्वर । गांधार- विविध प्रकार के गंधों से युक्त स्वर । मध्यम- महानादवाला स्वर । पंचम - नासिकाओं से निकलनेवाला स्वर । धैवत - अन्य स्वरों से अनुसंधान करनेवाला स्वर । निषाद - अन्य स्वरों को तिरस्कृत करनेवाला स्वर । [६०६] इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं, यथा
[६०७] षड्ज सवर जिह्वा के अग्रभाग से निकने वाला स्वर । ऋषभ स्वर हृदय से निकलता है । गांधार स्वर उग्र कंठ से निकलता है । मध्यम स्वर जिह्वा के मध्य भाग से निकलता है ।
[६०८] पंचम स्वर पाँच स्थानों से निकलने वाला स्वर । धैवत स्वर दाँत और ओष्ठ से निकलने वाला स्वर । निषाद स्वर मस्तक से निकलने वाला स्वर ।
[६०९] सात प्रकार के जीवों से निकलने वाले सात स्वर है । यथा[६१०] षड्ज- मयूर के कण्ठ से निकलनेवाला स्वर रिषभ - कुक्कुट के कण्ठे से निकलता है । गांधार हंस के कण्ठ से निकलता है । मध्यम घेटे के कण्ठ से निकलता है । [६११] पंचम कोयल के कण्ठ से निकलता है । धैवत सारस या क्रौंच के कण्ठ से निकलता है । निषाद हाथी के कण्ठ से निकलता है ।
[६१२] सात प्रकार के अजीव पदार्थों से निकलने वाले सात स्वर, यथा - षड्जस्वरमृदङ्ग से निकलता है । ऋषभ स्वर - गोमुखी से निकलता है । गांधार स्वर- शंख से निकलता है । मध्यम स्वर - झालर से निकलता है ।
[६१४] पंचम स्वर - गोधिका वाद्य से निकलता है । धैवत स्वर - ढोल से निकलता है । निषाद स्वर - महाभेरी से निकलता है ।