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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
मर्यादा । निर्विष्ठकल्पस्थिति - पारिहारिक तप पूरा करने वाले की मर्यादा । जिन कल्पस्थितिजिन कल्प की मर्यादा । स्थविर कल्पस्थिति - स्थविर कल्प की मर्यादा ।
[५८२] श्रमण भगवान् महावीर चतुर्विध आहार परित्यागपूर्वक छट्ट भक्त (दो उपवास) करके मंडित यावत् प्रवजित हुए । श्रमण भगवान् महावीर को जब केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ था उस समय चौविहार छट्ठभक्त था । श्रमण भगवान् महावीर जब सिद्ध यावत् सर्व दुःख से मुक्त हुए उस समय चौविहार छट्ट भक्त था ।
[५८३] सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प - देवलोक में विमान छः सौ योजन ऊंचे हैं । सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प में भवधारणीय शरीर की अवगाहना-छः हाथ की है । [५८४] भोजन का परिणाम - स्वभाव छः प्रकार का है यथा- मनोज्ञ मन को अच्छा लगनेवाला । रसिक - माधुर्यादि रस युक्त । प्रीणनीय - तृप्ति करने वाला तथा शरीर के रसों में समता लानेवाला । बृंहणीय - शरीर की वृद्धि करनेवाला । दीपनीय - जठराग्नि प्रदीप्त करने वाला । मदनीय - कामोतेजक ।
विष का परिणाम - स्वभाव छह प्रकार का है । यथा-दष्ट - सर्प आदि के डंक से पीड़ा पहुंचाने वाला । भुक्त खाने पर पीड़ा पहुंचाने वाला । निपतित-शरीर पर गिरते ही पीड़ित करने वाला अथवा दृष्टिविष । मांसानुसारी - मांस में व्याप्त होने वाला । शोणितानुसारी - रक्त में व्याप्त होनेवाला । अस्थिमज्जानुसारी - हड्डी और चर्बी में व्याप्त होने वाला
[५८५] प्रश्न छः प्रकार के हैं, यथा- संशय प्रश्न - संशय होने पर किया जाने वाला प्रश्न । मिथ्याभिनिवेश प्रश्न - परपक्ष को दूषित करने के लिये किया गया प्रश्न । अनुयोगी प्रश्न- व्याख्या करने के लिए ग्रन्थकार द्वारा किया गया प्रश्न । अनुलोभ प्रश्न - कुशलप्रश्न । तथाज्ञानप्रश्न- गणधर गौतम के प्रश्न । अतथाज्ञान प्रश्न- अज्ञ व्यक्ति के प्रश्ना ।
[५८६] चमर चंचा राजधानी में उत्कृष्ट विरह छः मास का है । प्रत्येक इन्द्रप्रस्थान में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है ।
सप्तम पृथ्वी तमस्तमा में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है । सिद्धगती में उपपात विरह उत्कृष्ट छः मास का है ।
[५८७] आयुबंध छः प्रकार का है, यथा- जातिनामनिधत्तायु-जातिनाम कर्म के साथ प्रति समय भोगने के लिये आयुकर्म के दलिकों की निषेक नाम की रचना । गतिमान निधत्तायुगतिमान कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना । स्थितिनाम निधत्तायु -स्थिति की अपेक्षा से निषेक रचना । अवगाहना नाम निधत्तायु - जिसमें आत्मा रहे वह अवगाहना औदारिक शरीर आदि की होती है । अतः शरीर नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना । प्रदेश नाम निधत्तायुप्रदेश रूप नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना | अनुभाव नाम निधत्तायु - अनुभाव विपाक रूप नाम कर्म के साथ पूर्वोक्त रचना ।
नैरयिकों के यावत् वैमानिकों के छः प्रकार का आयुबंध होता है । यथा- जातिनाम निधत्तायु- यावत् अनुभावनाम निधत्तायु । नैरयिक यावत् वैमानिक छः मास आयु शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ।
[५८८] भाव छः प्रकार के हैं, यथा- - औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक, सान्निपातिक ।