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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
पांच कारणों
सूत्र सीखे, यथा- ज्ञान वृद्धि के लिये, दर्शन शुद्धि के लिये, चारित्र शुद्धि के लिये, दूसरे का दुराग्रह छुड़ाने के लिये, पदार्थों के यथार्थ ज्ञान के लिये । [५१२] सौधर्म और ईशान कल्प में विमान पांचसौ योजन के ऊंचे हैं । ब्रह्मलोक और लान्तक कल्प में देवताओं के भवधारणीय शरीर उंचाई मै पांच हाथ
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उंचे है ।
नैरयिकों ने पांच वर्ण और पांच रस वाले कर्म पुद्गल बांधे हैं, बांधते हैं और बांधेगे । यथा- कृष्ण - यावत्-शुक्ल । तिक्त यावत्-मधुर । इसी प्रकार वैमानिक देव पर्यन्त ( चौबीस दण्डकों में) कहैं ।
[ ५१३] जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में गंगा महानदी में पांच महानदियाँ मिलती हैं, यथा- यमुना, सरयू, आदि, कोसी, मही । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु के दक्षिण में सिन्धु महानदी में पांच महानदियां मिलती हैं । यथा - शतद्रू, विभाषा, वित्रस्ता, एरावती, चंद्रभागा । जम्बूद्वीपवर्ती मेरु के उत्तर में रक्ता महानदी में पांच महानदियां मिलती हैं, यथा- कृष्णा, महा कृष्णा, नीला, महानीला, महातीरा । जम्बूद्वीप वर्ती मेरु के उत्तर में रक्तावती महानदी में पांच महानदियां मिलती हैं, यथा- इन्द्रा, इन्द्र सेना, सुसेणा वारिसेणा, महाभोगा ।
[५१४] पांच तीर्थंकर कुमारावस्था में ( राज्य ग्रहण किए बिना ) मुण्डित - यावत् - प्रव्रजित हुए, यथा- वासुपूज्य, मल्ली, अरिष्टनेमी पार्श्वनाथ, महावीर ।
[५१५] चमरचंचा राजधानी में पांच सभायें हैं, यथा- सुधर्मासभा, उपपातसभा, अभिषेकसभा, अलंकारसभा, व्यवसायसभा । प्रत्येक इन्द्र स्थान में पांच-पांच सभायें हैं, यथा - सुधर्मा सभा-यावत्-व्यवसायसभा ।
[५१६] पांच नक्षत्र पांच पांच तारा वाले हैं, धनिष्ठा, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, विशाखा । [५१७] जीवों ने पांच स्थानों में कर्म पुद्गलों को पाप कर्म रूप में चयन किया, करते हैं और करेंगे । यथा - एकेन्द्रिय रूप में यावत्-पञ्चेन्द्रिय रूप में । इसी प्रकार उपचय, बंध, उदीरणा, वेदन तथा निर्जरा सम्बन्धी सूत्रक हैं ।
पांच प्रदेश वाले स्कन्ध अनन्त हैं । पांच प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । पांच समयाश्रित पुद्गल अनन्त हैं । पांच गुण कृष्ण - यावत्-पांच गुण रुक्ष पुद्गल अनन्त हैं । स्थान- ५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
स्थान- ६
[ ५१८] छ: स्थान युक्त अणगार गण का अधिपति हो सकता है । यथा - श्रद्धालु, सत्यवादी, मेघावी, बहुश्रुत, शक्ति सम्पन्न, क्लेशरहित ।
[५१९] छः कारणों से निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को पकड़ कर रखे या सहारा दे तो भगवान् की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता । यथा - विक्षिप्त को, क्रुद्ध को, यक्षाविष्ट को, उन्मत्त को, उपसर्ग युक्त को, कलह करती हुई को ।
[५२०] छः कारणों से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां कालगत साधर्मिक के प्रति आदरभाव करें तो आज्ञा का अतिक्रमण नहीं होता है । यथा - उपाश्रय से बाहर निकालना हो, उपाश्रय के बाहर से जंगल में ले जाना हो, मृत को बांधना हो, जागरण करना हो, अनुज्ञापन करना