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________________ स्थान- ५/२/४८४ १२१ अकर्मा - कर्म रहित । शुद्ध ज्ञान-दर्शन के धारक अर्हन्त जिन केवली । अपरिश्रावी - तीनों योगो का निरोध करनेवाला अयोगी । निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को पांच प्रकार के वस्त्रों का उपभोग या परिभोग कल्पता है, जांगमिक कंबल आदि । भांगमिक - अलसी का वस्त्र । सानक-शण के सूत्र का वस्त्र । पोतक - कपास का वस्त्र । तिरडपट्ट-वृक्ष की छाल का वस्त्र । निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को पांच प्रकार के रजोहरणों का उपभोग या परिभोग कल्पता है । यथा - और्णिक ऊन का बना हुआ । औट्रिक - ऊँट के वालों का बना हुआ । शानक—-शण का बना हुआ । बल्वज - घास की छाल से बना हुआ । मुज का बना हुआ । [४८५] धार्मिक पुरुष के पांच आलम्बन स्थान हैं, यथा- छकाय, गण, राजा, गृहपति और शरीर । [४८६] निधि पांच प्रकार की है, यथा- पुत्रनिधि, मित्रनिधि, शिल्पनिधि, धननिधि और धान्यनिधि | [४८७] शौच पांच प्रकार का है, पृथ्वीशौच, जलशौच, अग्निशौच, मंत्रशौच और ब्रह्म शौच । [४८८] इन पांच स्थानों को छद्मस्थ पूर्ण रूप से न जानता है और न देखता है । यथा - धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित जीव, परमाणुपुद्गल । किन्तु इन्हीं पांच स्थानों को केवलज्ञानी पूर्णरूप से जानते हैं और देखते हैं, यथा- धर्मास्तिकाययावत्-परमाणु पुद्गल । [४८९] अधोलोक में पांच भयंकर बडी नरके है । यथा -काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान, ऊर्ध्वलोक में पाँच महाविमान हैं, यथा- विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजयंत, सर्वार्थसिद्धमहाविमान । [४९०] पुरुष पांच प्रकार के हैं, यथा- ही सत्त्व - लज्जा से धैर्य रखने वाला, ही मन सत्त्व - लज्जा से मन में धैर्य रखने वाला, चल सत्त्व-अस्थिर चित्त वाला, स्थिर सत्त्व- स्थिर चित्त वाला, उदात्त सत्त्व-बढ़ते हुए धैर्यवाला । [ ४९१] मत्स्य पांच प्रकार के हैं, यथा- अनुश्रोतचारी - प्रवाह के अनुसार चलने वाला, प्रतिश्रोतारी - प्रवाह के सामने जाने वाला । अंतचारी - किनारे किनारे चलने वाला, प्रान्तचारी - प्रवाह के मध्य में चलने वाला, सर्वचारी - सर्वत्र चलने वाला । इसी प्रकार भिक्षु पांच प्रकार के हैं, यथा- अनुश्रोतचारी - यावत्- सर्वश्रोतचारी । उपाश्रय से भिक्षाचर्या प्रारम्भ करने वाला, दूर से भिक्षाचार्य प्रारम्भ करके उपाश्रय तक आने वाला, गांव के किनारे बसे हुए घरों से भिक्षा लेनेवाला, गांव के मध्य में बसे हुए घरों से भिक्षा लेनेवाला, सभी घरों से भिक्षा लेनेवाला । [४९२] वनीपक- याचक पांच प्रकार के हैं, यथा- अतिथिवनीपक, दरिद्रीवनीपक, ब्राह्मणवनीपक, श्वानवनीपक, श्रमणवनीपक | [४९३] पांच कारणों से अचेलक प्रशस्त होता है, यथा- अल्पप्रत्युपेक्षा - अल्प उपधि होने से अल्प- प्रतिलेखन होता है । प्रशस्त लाघव अल्प उपधि होने से अल्पराग होता है । वैश्वासिक रूप-विश्वास पैदा करने वाला वेष । अनुज्ञात तप-जिनेश्वर सम्मत अल्प उपधि
SR No.009780
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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