SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार-१/६/२/१९६ सब प्रकार से मुण्डित होकर पैदल विहार करता है, जो अल्पवस्त्र या निर्वस्त्र है, वह अनियतवासी रहता है या अन्त-प्रान्तभोजी होता है, वह भी ऊनोदरी तप का सम्यक् प्रकार से अनुशीलन करता है | (कदाचित्) कोई विरोधी मनुष्य उसे गाली देता हैं, मारता-पीटता है, उसके केश उखाड़ता या खींचता है, पहले किये हुए किसी घृणित दुष्कर्म की याद दिलाकर कोई बकझक करता है, कोई व्यक्ति तथ्यहीन शब्दों द्वारा (सम्बोधित करता है), हाथ-पैर आदि काटने का झूठा दोषारोपण करता है; ऐसी स्थिति में मुनि सम्यक् चिन्तन द्वारा समभाव से सहन करे | उन एकजातीय और भिन्नजातीय परीषहों को उत्पन्न हुआ जानकर समभाव से सहन करता हुआ संयम में विचरण करे । (वह मुनि) लज्जाकारी और अलज्जाकारी (परीषहों को सम्यक् प्रकार से सहन करता हुआ विचरण करे) । [१९७] सम्यग्दर्शन-सम्पन्न मुनि सब प्रकार की शंकाएँ छोड़कर दुःख-स्पर्शों को समभाव से सहे । हे मानवो ! धर्मक्षेत्र में उन्हें ही नग्न कहा गया है, जो मुनिधर्म में दीक्षित होकर पुनः गृहवास में नहीं आते । आज्ञा में मेरा धर्म है, यह उत्तर वाद इस मनुष्यलोक में मनुष्यों के लिए प्रतिपादित किया है । विषय से उपरत साधक ही इस का आसेवन करता है । वह कर्मों का परिज्ञान करके पर्याय (संयमी जीवन) से उसका क्षय करता है । इस (निर्ग्रन्थ संघ) में कुछ लघुकर्मी साधुओं द्वारा एकाकी चर्या स्वीकृत की जाती हैं | उस में वह एकल-विहारी साधु विभिन्न कुलों से शुद्ध-एषणा और सर्वेषणा से संयम का पालन करता वह मेधावी (ग्राम आदि में) पख्रिजन करे । सुगन्ध या दुर्गन्ध से युक्त (जैसा भी आहार मिले, उसे समभाव से ग्रहण करे) अथवा एकाकी विहार साधना से भयंकर शब्दों को सुनकर या भयंकर रूपों को देखकर भयभीत न हो । हिंस्त्र प्राणी तुम्हारे प्राणों को क्लेश पहुँचाएँ, (उससे विचलित न हो) । उन परीषहजनित-दुःखों का स्पर्श होने पर धीर मुनि उन्हें सहन करे । - ऐसा मैं कहता हूँ । | अध्ययन-६-उद्देशक-३ [१९८] सतत सु-आख्यात धर्मवाला विधूतकल्पी (आचार का सम्यक् पालन करनेवाला) वह मुनि आदान (मर्यादा से अधिक वस्त्रादि) का त्याग कर देता है । - जो भिक्षु अचेलक रहता है, उस भिक्षु को ऐसी चिन्ता उत्पन्न नहीं होती कि मेरा वस्त्र सब तरह से जीर्ण हो गया है, इसलिए मैं वस्त्र की याचना करूँगा, फटे वस्त्र को सीने के लिए धागे की याचना करूँगा, फिर सूई की याचना करूँगा, फिर उस वस्त्र को साँधूंगा, उस सीऊँगा, छोटा है, इसलिए दूसरा टुकड़ा जोड़कर बड़ा बनाऊँगा, बड़ा है, इसलिए फाड़कर छोटा बनाऊँगा, फिर उसे पहनूँगा और शरीर को ढकूँगा । अथवा अचेलत्व-साधना में पराक्रम करते हुए निर्वस्त्र मुनि को बार-बार तिनकों का स्पर्श, सर्दी और गर्मी का तथा डाँस तथा मच्छरों का स्पर्श पीड़ित करता है । अचेलक मुनि उनमें से एक या दूसरे, नाना प्रकार के स्पर्शों को सहन करे । अपने
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy