SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद में बहुत चर्बी है, यह गोलमटोल है, यह वध या वहन करने योग्य है, यह पकाने योग्य है । इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवघातक भाषा का प्रयोग न करे। [४७२] संयमशील साधु या साध्वी परिपुष्ट शरीर वाले किसी मनुष्य, बैल, यावत्किसी भी विशालकाय प्राणी को देखकर ऐसे कह सकता है कि यह पुष्ट शरीर वाला है, उपचितकाय है, दृढ़ संहननवाला है, या इसके शरीर में रक्त-मांस संचित हो गया है, इसकी सभी इन्द्रियाँ परिपूर्ण हैं । इस प्रकार की असावद्य यावत् जीवोपघात से रहित भाषा बोले । साधु या साध्वी नाना प्रकार की गायों तथा गोजाति के पशुओं को देखकर ऐसा न कहे, कि ये गायें दूहने योग्य हैं अथवा इनको दूहने का समय हो रहा है, तथा यह बैल दमन करने योग्य है, यह वृषभ छोटा है, या यह वहन करने योग्य है, यह रथ में जोतने योग्य है, इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा का प्रयोग न करे । इस प्रकार कह सकता है, जैसे कि - यह वृषभ जवान है, यह गाय प्रौढ़ है, दुधारू है, यह बैल बड़ा है, यह संवहन योग्य है । इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषा का प्रयोग करे । संयम साधु सा साध्वी किसी प्रयोजनवश किन्हीं बगीचों में, पर्वतों पर या वनों में जाकर वहाँ बड़े-बड़े वृक्षों को देखकर ऐसे न कहे, कि यह वृक्ष (काटकर) मकान आदि में लगाने योग्य है, यह तोरण-नगर का मुख्य द्वार बनाने योग्य है, यह घर बनाने योग्य है, यह फलक (तख्त) बनाने योग्य है, इसकी अर्गला बन सकती है, या नाव बन सकती है, पानी की बड़ी कुंडी अथवा छोटी नौका बन सकती है, अथवा यह वृक्ष चौकी काष्ठमयी पात्री, हल, कुलिक, यंत्रयष्टी नाभि, काष्ठमय, अहरन, काष्ठ का आसन आदि बनाने के योग्य है अथवा काष्ठशय्या रथ आदि यान, उपाश्रय आदि के निर्माण के योग्य है । इस प्रकार सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा साधु न बोले । इस प्रकार कह सकते हैं कि ये वृक्ष उत्तम के हैं, दीर्घ हैं, वृत्त हैं, ये महालय हैं, इनकी शाखाएँ फट गई हैं, इनकी प्रशाखाएँ दूर तक फैली हुई हैं, ये वृक्ष प्रासादीय हैं, दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं, प्रतिरूप हैं । इस प्रकार की असावद्य यावत् जीवोपघात -रहित भाषा का प्रयोग करे । साधु या साध्वी प्रचुर मात्रा में लगे हुए वन फलों को देखकर इस प्रकार न कहे जैसे कि - ये फल पक गए हैं, या पराल आदि में पकाकर खाने योग्य हैं, ये पक जाने से ग्रहण कालोचित फल हैं, अभी ये फल बहुत कोमल हैं, क्योंकि इनमें अभी गुठली नहीं पड़ी है, ये फल तोड़ने योग्य या दो टुकड़े करने योग्य हैं । इस प्रकार सावध यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले । इस प्रकार कह सकता है, जैसे कि ये फलवाले वृक्ष असंतृत हैं, इनके फल प्रायः निष्पन्न हो चुके हैं, ये वृक्ष एक साथ बहुत-सी फलोत्पत्ति वाले हैं, या ये भूतरूप कोमल फल हैं । इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात -रहित भाषा विचारपूर्वक बोले । साधु या साध्वी बहुत मात्रा में पैदा हुई औषधियों को देखकर यों न कहे, कि ये पक गई हैं, या ये अभी कच्ची या हरी हैं, ये छवि वाली हैं, ये अब काटने योग्य हैं, ये भूनने या सेकने योग्य हैं, इनमें बहुत-सी खाने योग्य हैं । इस प्रकार सावद्य यावत् जीवोपघातिनी भाषा साधु न बोले । इस प्रकार कह सकता है, कि इनमें बीज अंकुरित हो गए हैं, ये अब जम गई हैं, सुविकसित या निष्पन्नप्रायः हो गई हैं, या अब ये स्थिर हो गई हैं, ये ऊपर उठ गई -
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy