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________________ आचार-२/१/४/२/४७० देखकर इस प्रकार न कहे । जैसे कि गण्डी माला रोग से ग्रस्त या जिसका पैर सूज गया हो गण्डी, कुष्ठ रोग से पीड़ित को कोढ़िया, यावत् मधुमेह से पीड़ित रोगी को मधुमेही कहकर पुकारना, अथवा जिसका हाथ कटा हुआ है उसे हाथकटा, पैरकटे को पैरकटा, नाक कटा हुआ हो उसे नकटा, कान कट गया हो उसे कानकटा और ओठ कटा हुआ हो, उसे ओठका कहना । ये और अन्य जितने भी इस प्रकार के हों, उन्हें इस प्रकार की भाषाओं से सम्बोधित करने पर वे व्यक्ति दुःखी या कुपित हो जाते हैं । अतः ऐसा विचार करके उन लोगों को उन्हें ( जैसे हों वैसी ) भाषा से सम्बोधित न करे । साधु या साध्वी यद्यपि कितने ही रूपों को देखते हैं, तथापि वे उनके विषय में इस प्रकार कहें । जैसे कि ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, उपादेयवचनी या लब्धियुक्त कहें । जिसकी यशः कीर्ति फैली हुई हो उसे यशस्वी, जो रूपवान् हो उसे अभिरूप, जो प्रतिरूप हो उसे प्रतिरूप, प्रासाद गुण से युक्त हो उसे प्रासादीय, जो दर्शनीय हो, उसे दर्शनीय कहकर सम्बोधित करे । ये और जितने भी इस प्रकार के अन्य व्यक्ति हों, उन्हें इस प्रकार की भाषाओं से सम्बोधित करने पर वे कुपित नहीं होते । अतः इस प्रकार निरवद्य भाषाओं का विचार करके साधु-साध्वी निर्दोष भाषा बोले । १११ साधु या साध्वी यद्यपि कई रूपों को देखते हैं, जैसे कि खेतों की क्यारियाँ, खाइयाँ या नगर के चारों ओर बनी नहरें, प्राकार, नगर के मुख्य द्वार, अर्गलाएँ, गड्ढे, गुफाएँ, कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षागार, पर्वतगृह, चैत्ययुक्त वृक्ष, चैत्ययुक्त स्तूप, लोहा आदि के कारखाने, आयतन, देवालय, सभाएँ, प्याऊ, दुकानें, मालगोदाम, यानगृह, धर्मशालाएँ, चूने, दर्भ, वल्क के कारखाने, वन कर्मालय, कोयले, काष्ठ आदि के कारखाने, श्मशान गृह, शान्तिकर्मगृह, गिरिगृह, गृहागृह, भवन आदि; इनके विषय में ऐसा न कहे; जैसे कि यह अच्छा बना है, भलीभाँति तैयार किया गया है, सुन्दर बना है, यह कल्याणकारी है, यह करने योग्य है; इस प्रकार की सावद्य यावत् जीवोपघातक भाषा न बोलें । साधु या साध्वी यद्यपि कई रूपों को देखते हैं, जैसे कि खेतों की क्यारियाँ यावत् भवनगृह; तथापि इस प्रकार कहें- जैसे कि यह आरम्भ से बना है सावद्यकृत है, या यह प्रयत्न- साध्य है, इसी प्रकार जो प्रसादगुण से युक्त हो, उसे प्रासादीय, जो देखने योग्य हो, उसे दर्शनीय, जो रूपवान हो, उसे अभिरूप, जो प्रतिरूप हो, उसे प्रतिरूप कहे । इस प्रकार विचारपूर्वक असावद्य यावत् जीवोपघात से रहित भाषा का प्रयोग करे । [४७१] साधु या साध्वी अशनादि चतुर्विध आहार को देखकर भी इस प्रकार न कहे जैसे कि यह आहारादि पदार्थ अच्छा बना है, या सुन्दर बना है, अच्छी तरह तैयार किया गया है, या कल्याणकारी है और अवश्य करने योग्य है । इस प्रकार की भाषा साधु या साध्वी सावद्य यावत् जीवोपघातक जानकर न बोले । इस प्रकार कह सकते हैं, जैसे कि यह आहारादि पदार्थ आरम्भ से बना है, सावधकृत है, प्रयत्नसाध्य है या भद्र है, उत्कृष्ट है, रसिक है, या मनोज्ञ है; इस प्रकार असावद्य यावत् जीवोपघात रहित भाषाप्रयोग करे । वह साधु या साध्वी परिपुष्ट शरीर वाले किसी मनुष्य, सांड, भैंसे, मृग, या पशु पक्षी, सर्प या जलचर अथवा किसी प्राणी को देखकर ऐसा न कहे कि वह स्थूल है, इसके शरीर
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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