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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद जो भाषा सत्या है, जो भाषा मृषा है, जो भाषा सत्यामृषा है, अथवा जो भाषा असत्यामृषा है, इन चारों भाषाओं में से (केवल सत्या और असत्यामृषा का प्रयोग ही आचरणीय है ।) उसमें भी यदि सत्यभाषा सावद्य, अनर्थदण्डक्रियायुक्त, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, कठोर, कर्मों की आस्वकारिणी तथा छेदनकारी, भेदनकारी, परितापकारिणी, उपद्रवकारिणी एवं प्राणियों का विघात करनेवाली हो तो विचारशील साधु को मन से विचार करके ऐसी सत्यभाषा का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए । जो भाषा सूक्ष्म सत्य सिद्ध हो तथा जो असत्यामृषा भाषा हो, साथ ही असावद्य, अक्रिय यावत् जीवों के लिए अघातक हों तो संयमशील साधु मन से पहले पर्यालोचन करके इन्हीं दोनों भाषाओं का प्रयोग करे । ११० [४६८] साधु या साध्वी किसी पुरुष को आमन्त्रित कर रहे हों और आमन्त्रित करने पर भी वह न सुने तो उसे इस प्रकार न कहे - अरे होल रे गोले ! या हे गोल ! अय वृषल ! हे कुपक्ष अरे घटदास ! या ओ कुत्ते ! ओ चोर ! अरे गुप्तचर ! अरे झूठे ! ऐसे ही तुम हो, ऐसे ही तुम्हारे माता-पिता हैं ।" साधु इस प्रकार की सावध, सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोले । संयमशील साधु या साध्वी किसी पुरुष आमंत्रित करने पर भी वह न सुने तो उसे इस प्रकार सम्बोधित करे - हे अमुक ! हे आयुष्मन् ! ओ श्रावकजी ! हे उपासक ! धार्मिक ! या हे धर्मप्रिय ! इस प्रकार की निरवद्य यावत् भूतोपघातरहित भाषा विचारपूर्वक बोले । साधु या साध्वी किसी महिला को बुला रहे हों, बहुत आवाज देने पर भी वह न सुने तो उसे ऐसे नीच सम्बोधनों से सम्बोधित न करे - अरी होली ! अरी गोली ! अरी वृषली ! कुपक्षे ! अरी घटदासी ! कुत्ती ! अरी चोरटी ! हे गुप्तचरी ! अरी मायाविनी ! अरी झूठी ! ऐसी ही तू है और ऐसे ही तेरे माता-पिता हैं ! विचारशील साधु-साध्वी इस प्रकार की सावद्य सक्रिय यावत् जीवोपघातिनी भाषा न बोलें । साधु या साध्वी किसी महिला को आमंत्रित कर रहे हों, वह न सुने तो - आयुष्मती ! भवती, भगवति ! श्राविके ! उपासिके ! धार्मिके ! धर्मप्रिये ! इस प्रकार की निरवद्य यावत् जीवोपघात -रहित भाषा विचारपूर्वक बोले । साधु या साध्वी इस प्रकार न कहे कि 'नभोदेव है, गर्ज देव है, या विद्युतदेव है, प्रवृष्ट देव है, या निवृष्ट देव है, वर्षा बरसे तो अच्छी या न बरसे तो अच्छा, धान्य उत्पन्न हों या न हों, रात्रि सुशोभित हो या न हो, सूर्य उदय हो या न हो, वह राजा जीते या न जीते ।” साधु इस प्रकार की भाषा न बोले । साधु या साध्वी को कहने का प्रसंग उपस्थित हो तो आकाश को गुह्यानुचरित - कहे यो देवों के गमनागमन करने का मार्ग कहे । यह पयोधर जल देने वाला है, संमूर्च्छिम जल बरसता है, या यह मेघ बरसता है, या बादल बरस चुका है, इस प्रकार की भाषा बोले । यही उस साधु और साध्वी की साधुता की समग्रता है कि वह ज्ञानादि अर्थों से तथा समितियों से युक्त होकर सदा इसमें प्रयत्न करे । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन - ४ उद्देशक - २ [४७०] संयमशील साधु या साध्वी यद्यपि अनेक रूपों को देखते हैं तथापि उन्हें
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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