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________________ - १०६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद वह सैनिक साधु को बाहें पकड़ कर खींचने या घसीटने लगे, उस समय साधु को अपने मन में न हर्षित होना चाहिए, न रुष्ट; बल्कि उसे समभाव एवं समाधिपूर्वक सह लेना चाहिए । इस प्रकार उसे यतनापूर्वक एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते रहना चाहिए । [४६०] ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक मिलें और वे साधु से यों पूछे “यह गाँव कितना बड़ा या कैसा है ? यावत् यह राजधानी कैसी है ? यहाँ पर कितने घोड़े, हाथी तथा भिखारी हैं, कितने मनुष्य निवास करते हैं ? क्या इस गाँव यावत् राजधानी में प्रचुर आहार, पानी, मनुष्य एवं धान्य हैं, अथवा थोड़े ही हैं ? इस प्रकार पूछे जाने पर साधु उनका उत्तर न दे । उन प्रातिपथिकों से भी इस प्रकार के प्रश्न न पूछे । उनके द्वारा न पूछे जाने पर भी वह ऐसी बातें न करे । अपितु संयमपूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करता रहे । यही (संयमपूर्वक विहारचर्या) उस भिक्षु या भिक्षुणी की साधुता की सर्वांगपूर्णता है; जिसके लिए सभी ज्ञानादि आचाररूप अर्थों से समित होकर साधु सदा प्रयत्नशील रहे । - ऐसा मैं कहता हूँ। अध्ययन-३ उद्देशक-३] [४६१] ग्रामानुग्राम विहार करते हुए भिक्षु या भिक्षुणी मार्ग में आनेवाले उन्नत भूभाग या टेकरे, खाइयाँ, नगर को चारों ओर से वेष्टित करने वाली नहरें, किले, नगर के मुख्य द्वार, अर्गला, अर्गलापाशक, गड्ढे, गुफाएँ या भूगर्भ मार्ग तथा कूटागार, प्रासाद, भूमिगृह, वृक्षों को काटछांट कर बनाए हुए गृह, पर्वतीय गुफा, वृक्ष के नीचे बना हुआ चैत्यस्थल, चैत्यमय स्तूप, लोहकार आदि की शाला, आयतन, देवालय, सभा, प्याऊ, दूकान, गोदाम, यानगृह, यानशाला, चूने का, दर्भकर्म का, घास की चटाइयों आदि का, चर्मकर्म का, कोयले बनाने का और काष्ठकर्म का कारखाना, तथा श्मशान, पर्वत, गुफा आदि में बने हुए गृह, शान्तिकर्म गृह, पाषाणमण्डप एवं भवनगृह आदि को बाँहें बार-बार ऊपर उठाकर, यावत् ताक-ताक कर न देखे, किन्तु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करने में प्रवृत्त रहे । ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वियों के मार्ग में यदि कच्छ, घास के संग्रहार्थ राजकीय त्यक्त भूमि, भूमिगृह, नदी आदि से वेष्टित भू-भाग, गम्भीर, निर्जल प्रदेश का अरण्य, गहन दुर्गम वन, गहन दुर्गम पर्वत, पर्वत पर भी दुर्गम स्थान, कूप, तालाब, द्रह नदियाँ, बावड़ियाँ, पुष्करिणियाँ, दीर्धिकाएँ जलाशय, बिना खोदे तालाब, सरोवर, सरोवर की पंक्तियाँ और बहुत से मिले हुए तालाब हों तो अपनी भुजाएँ ऊँची उठाकर, यावत् ताक-ताक कर न देखे । केवली भगवान् कहते हैं -- यह कर्मबन्ध का कारण है; (क्योंकि) ऐसा करने से जो इन स्थानों में मृग, पशु, पक्षी, साँप, सिंह, जलचर, स्थलचर, खेचर, जीव रहते हैं, वे साधु की इन असंयम-मूलक चेष्टाओं को देखकर त्रास पायेंगे, वित्रस्त होंगे, किसी वाड़ की शरण चाहेंगे, वहाँ रहने वालों को साधु के विषय में शंका होगी । यह साधु हमें हटा रहा है, इस प्रकार का विचार करेंगे । इसीलिए तीर्थंकरादि आप्तपुरुषों ने भिक्षुओं के लिए पहले से ही ऐसी प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि बाँहें ऊँची उठाकर या अंगुलियों से निर्देश करके या शरीर को ऊँचा-नीचा करके ताक-ताककर न देखे । अपितु यतनापूर्वक आचार्य और
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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