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________________ आचार-२/१/३/३/४६१ १०७ उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ संयम का पालन करे । [४६२] आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु अपने हाथ से उनके हाथ का, पैर से उनके पैर का तथा अपने शरीर से उनके शरीर का स्पर्श न करे । उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईयर्यासमिति पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । आचार्य और उपाध्याय के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से आते हुए कुछ यात्री मिलें, और वे पूछे कि - "आयुष्मन् श्रमण ! आप कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ? कहाँ जाएँगे ?" (इस प्रश्न पर) जो आचार्य या उपाध्याय साथ में हैं, वे उन्हें सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंगे । आचार्य या उपाध्याय उत्तर दे रहे हों, तब वह साधु बीच में न बोले । किन्तु मौन रह कर ईर्यासमिति का ध्यान रखता हुआ रत्नाधिक क्रम से उनके साथ ग्रामानुग्राम विचरण करे । रत्नाधिक साधु के साथ ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ मुनि अपने हाथ से रत्नाधिक साधु के हाथ को, पैर से उनके पैर को तथा शरीर से उनके शरीर का स्पर्श न करे । उनकी आशातना न करता हुआ साधु ईयर्यासमिति पूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे ।। [४६३] रत्नाधिक साधुओं के साथ ग्रामानुग्राम विहार करने वाले साधु को मार्ग में यदि सामने से आते हुए कुछ प्रातिपथिक मिलें और वे यों पूछे कि “आप कौन हैं ? कहाँ से आए हैं ? और कहाँ जाएंगे ?" (ऐसा पूछने पर) जो उन साधुओं में सबसे रत्नाधिक वे उनको सामान्य या विशेष रूप से उत्तर देंगे । तब वह साधु बीच में न बोले । किन्तु मौन रहकर ईर्यासमिति का ध्यान रखता हुआ उनके साथ ग्रामानुग्राम विहार करे । संयमशील साधु या साध्वी को ग्रामानुग्राम विहार करते हुए रास्ते में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएँ और वे यों पूछे “क्या आपने इस मार्ग में किसी मनुष्य को, मृग को, भैंसे को, पशु या पक्षी को, सर्प को या किसी जलचर जन्तु को जाते हुए देखा है ? वे किस ओर गये हैं ?" साधु न तो उन्हें कुछ बतलाए, न मार्गदर्शन करे, न ही उनकी बात को स्वीकार करे, बल्कि कोई उत्तर न देकर उदासीनतापूर्वक मौन रहे । अथवा जानता हुआ भी मैं नहीं जानता, ऐसा कहे । फिर यतनापूर्वक ग्रामनुग्राम विहार करे । ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु को मार्ग में सामने से कुछ पथिक निकट आ जाएँ और वे साधु से यों पूछे “क्या आपने इस मार्ग में जल में पैदा होने वाले कन्द, या मूल, अथवा छाल, पत्ते, फूल, फल, बीज, हरित अथवा संग्रह किया हुआ पेयजल या निकटवर्ती जल का स्थान, अथवा एक जगह रखी हुई अग्नि देखी है ? साधु न तो उन्हें कुछ बताए, तत्पश्चात् यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को मार्ग में सामने से आते हुए पथिक निकट आकर पूछे कि “क्या आपने इस मार्ग में जौ, गेहं आदि धान्यों का ढेर, रथ, बैलगाड़ियाँ, या स्वचक्र या परचक्र के शासन के सैन्य के नाना प्रकार के पड़ाव देखे हैं ? इस पर साधु उन्हें कुछ भी न बताए, तदनन्तर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे ।। ___ ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु-साध्वी को यदि मार्ग में कहीं प्रातिपथिक मिल जाएँ और वे उससे पूछे कि यह गाँव कैसा है, या कितना बड़ा है ? यावत् राजधानी कैसी है या कितनी बड़ी है ? यहाँ कितने मनुष्य यावत् ग्रामयाचक रहते हैं ? तो उनकी बात को स्वीकार
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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