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________________ १०२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद क्योंकि मार्ग में वर्षा हो जाने से द्वीन्द्रिय आदि जीवों की उत्पत्ति हो जाने पर, मार्ग में काई लीलन - फूलन, बीज, हरियाली, सचित्त पानी और अविध्वस्त मिट्टी आदि के होने से संयम की विराधना होनी संभव है । इसीलिए भिक्षुओं के लिए तीर्थंकरादि ने पहले से इस प्रतिज्ञा हेतु, कारण और उपदेश का निर्देश किया है कि साधु अन्य साफ और एकाद दिन में ही पार किया जा सके ऐसे मार्ग के रहते इस प्रकार के अटवी मार्ग से जाने का संकल्प न करे । अतः साधु को परिचित और साफ मार्ग से ही यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए । [४५२] ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि मार्ग में नौका द्वारा पार कर सकने योग्य जलमार्ग है; परन्तु यदि वह यह जाने कि नौका असंयत के निमित्त मूल्य देकर खरीद कर रहा है, या उधार ले रहा है, या नौका की अदला-बदली कर रहा है, या नाविक नौका को स्थल से जल में लाता है, अथवा जल से उसे स्थल में खींच ले जाता है, नौका से पानी उलीचकर खाली करता है, अथवा कीचड़ में फंसी हुई नौका को बाहर निकालकर साधु के लिए तैयार करके साधु को उस पर चढ़ने के लिए प्रार्थना करता है; तो इस प्रकार की नौका ( पर साधु न चढ़े 1) चाहे वह ऊर्ध्वगामिनी हो, अधोगामिनी हो या तिर्यग्गामिनी, जो उत्कृष्ट एक योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है, या अर्द्ध योजनप्रमाण क्षेत्र में चलती है, गमन करने के लिए उस नौका पर साधु सवार न हो । [कारणवश नौका में बैठना पड़े तो ] साधु या साध्वी सर्वप्रथम तिर्यग्गामिनी नौका को - देख ले । यह जान कर वह गृहस्थ की आज्ञा को लेकर एकान्त में चला जाए । वहाँ जाकर भण्डोपकरण का प्रतिलेखन करे, तत्पश्चात् सभी उपकरणों को इकट्ठे करके बाँध लें । फिर सिर से लेकर पैर तक शरीर का प्रमार्जन करे । आगारसहित प्रत्याख्यान करे । यह सब करके एक पैर जल में और एक स्थल में रखकर यतनापूर्वक उस नौका पर चढ़े । [४५३] साधु या साध्वी नौका पर चढ़ते हुए न नौका के अगले भाग में बैठे, न पिछले भाग में बैठे, और न मध्यभाग में । तथा नौका के बाजुओं को पकड़-पकड़ कर या अंगुली से बता-बताकर या उसे ऊँची या नीची करके एकटक जल को न देखे । यदि नाविक नौका में चढ़े हुए साधु से कहे कि “आयुष्मन् श्रमण ! तुम इस नौका को ऊपर की ओर खींचो, अथवा अमुक वस्तु को नौका में रखकर नौका को नीचे की ओर खींचो, या रस्सी को पकड़कर नौका को अच्छी तरह से बाँध दो, अथवा रस्सी से कस दो ।" नाविक के इस प्रकार के वचनों को स्वीकार न करे, किन्तु मौन बैठा रहे । - यदि नौकारूढ साधु को नाविक यह कहे कि – “आयुष्मन् श्रमण ! यदि तुम नौका को ऊपर या नीचे की ओर खींच नहीं सकते, या रस्सी पकड़कर नौका को भलीभाँति बाँध नहीं सकते या जोर से कस नहीं सकते, तो नाव पर रखी हुई रस्सी को लाकर दो । हम स्वयं नौका को ऊपर या नीचें की ओर खींच लेंगे, जोर से कस देंगे ।" इस पर भी साधु नाविक के इस वचन को स्वीकार न करे, चुपचाप उपेक्षाभाव से बैठा रहे । यदि नाविक यह कहे कि - " आयुष्मन् श्रमण ! जरा इस नौका को तुम डांड से, पीठ से, बड़े बाँस से, बल्ली से और अबलुक से तो चलाओ ।" नाविक के इस प्रकारके वचन को मुनि स्वीकार न करे, बल्कि उदासीनभाव से मौन होकर बैठा रहे । नौका में बैठे हुए साधु से अगर नाविक यह कहे कि "इस नौका में भरे हुए पानी
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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