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________________ आचार-२/१/३/१/४४९ [४४९] ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए साधु या साध्वी को मार्ग में विभिन्न देशों की सीमा पर रहने वाले दस्युओं के, म्लेच्छों के या अनार्यों के स्थान मिलें तथा जिन्हें बड़ी कठिनता से आर्यों का आचार समझाया जा सकता है, जिन्हें दुःख से, धर्म-बोध देकर अनार्यकर्मों से हटाया जा सकता है, ऐसे अकाल में जागनेवाले, कुसमय में खाने-पीनेवाले मनुष्यों के स्थान मिलें तो अन्य ग्राम आदि में विहार हो सकता है या अन्य आर्यजनपद विद्यमान हों, तो प्राक-भोजी साधु उन म्लेच्छादि के स्थान में विहार करने की दृष्टि से जाने का मन में संकल्प न करे । १०१ केवली भगवान् कहते हैं - वहाँ जाना कर्मबन्ध का कारण है, क्योंकि वे म्लेच्छ अज्ञानी लोग साधु को देखकर - यह चोर है, यह गुप्तचर है, यह हमारे शत्रु के गाँव से आया है', यों कह कर वे उस भिक्षु को गाली-गलौच करेंगे, कोसेंगे, रस्सों से बाँधेंगे, कोठरी में बंद कर देंगे, डंडों से पीटेंगे, अंगभंग करेंगे, हैरान करेंगे, यहाँ तक कि प्राणों से रहित भी कर सकते हैं, इसके अतिरिक्त वे दुष्ट उसके वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद-पोंछन आदि उपकरणों को तोड़फोड़ डालेंगे, अपहरण कर लेंगे या उन्हें कहीं दूर फेंक देंगे, इसीलिए तीर्थंकर आदि आप्त पुरुषों द्वारा भिक्षुओं के लिए पहले से ही निर्दिष्ट यह प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश है कि भिक्षु उन सीमा- प्रदेशवर्ती दस्युस्थानों तथा म्लेच्छ, अनार्य, दुर्बोध्य आदि लोगों के स्थानों में, अन्य आर्य जनपदों तथा आर्य ग्रामों के होते हुए जाने का संकल्प भी न करे । अतः इन स्थानों को छोड़ कर संयमी साधु यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करे । [४५०] साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश हैं, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि-विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार के प्रदेशों में विहार करने की दृष्टि से गमन करने का विचार न करे । केवली भगवान् ने कहा है - ऐसे अराजक आदि प्रदेशों में जाना कर्मबन्ध का कारण है । क्योंकि वे अज्ञानीजन साधु के प्रति शंका कर सकते हैं कि "यहचोर है, यह गुप्तचर हैं, यह हमारे शत्रु राजा के देश से आया है" तथा इस प्रकार की कुशंका से ग्रस्त होकर वे साधु को अपशब्द कह सकते हैं, मार-पीट सकते हैं, यहाँ तक कि उसे जान से भी मार सकते हैं । इसके अतिरिक्त उसके वस्त्र, पात्र, कंबल, पाद प्रोंछन आदि उपकरणों को तोड़फोड़ सकते हैं, लूट सकते हैं और दूर फेंक सकते हैं । इन सब आपत्तियों की संभावना से तीर्थंकर आदि आप्त पुरुषों द्वारा साधुओं के लिए पहले से ही यह प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश निर्दिष्ट हैं कि साधु अराजक आदि प्रदेशों में जाने का संकल्प न करे ।” अतः साधु को इन प्रदेशों को छोड़कर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए । [४५१] ग्रामानुग्राम विहार करते हुए साधु या साध्वी यह जाने कि आगे लम्बा, अटवी मार्ग है । यदि उस अटवी के विषय में वह यह जाने कि यह एक, दो, तीन, चार, या पांच दिनों में पार किया जाता सकता है अथवा पार नहीं किया जा सकता है, तो विहार के योग्य अन्य मार्ग होते, उस अनेक दिनों में पार किये जा सकने वाले भयंकर अटवी-मार्ग से जाने का विचार न करे । केवली भगवान् कहते हैं - ऐसा करना कर्मबन्ध का कारण है,
SR No.009779
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages257
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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