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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१२१६-61 ॥१२२२॥-67 उत्तरल्यापणाषि-१२/1108 (११०६) गंधे विरत्तो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरंपरेण न लिप्पई मवमझे विसंतोजलेण वा पोखरिणीपलासा ॥१२१५1-80 (१३०७) जिहाए रसं गहणं वयंतितं रागहेतु मणुचमाहु तं दोसहेउं अमणुत्रमाहुं समो यजो तेसुस थीयरागो (१३०८) रसस्स जिब्बं गहण वयंति जिब्माए रसं गहणं वयंति रागस्स हेउं समणुनमाहु दोसस्स हेउं अमणुत्रमाहु १२१७/62 (१३०२) रसेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावइ से विणासं रागाउरे बडिसविभिन्नकाए मच्छे जहा आभिसभोगगिद्धे ॥१२१८12-83 (१५१०) जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि खणे से उ उवेइ दुक्खं दुहंतदोसेण सएणजंतून किंचि रसं अवरुज्झई से ॥२१९||-84 (१३११) एगंतरत्ते रुइरंसिरसे अतालिसे से कुणई पओसं दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिपई तेण मुणी विरागो ॥२२०11-65 (१३१२) रसाणुगासाणुगए यजीवे चराचरे हिंसइऽणेगरुये। चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइ अत्तहगुरु किलढे 1१२२91-88 (१३१३) रसाणुवाएण परिगहेण उप्पायणे रक्खणसनिओगे वए विओगे य कहं सुहं से संभोगकाले य अतित्तलाभे (१४) रसे अतिते य परिग्गहम्मि सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहि अतुविदोसेण दुही परस्स लोमायिले आययई अदत्तं ॥१२२३॥-88 (१५१५) तपहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो रसे अतित्तस्स परिग्गहे य मावामुसं वाहन लोमदोसा तत्याविदुक्खा न विमुद्याईसे ॥१२२४।।-69 (१३१६) मोसस्स पच्छा य पुरत्यओ यपओगकाले य दुही दुरंते एवं अदत्ताणि समाययंती रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो १२२५।।-70 (१३१७) रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्योवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥१२२६||-71 (१३१८) एमेव रसम्मि गओ पओसं उयेइ टुक्खोहपरंपराओ पदुदृचित्तो य चिणाइ कमजं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥१२२७1-72 (१५१९) रसे विरतो मणुओ विसोगो एएणदुक्खोहपरंपरेण न लिप्पई मवमझे विसंतोजलेण वा पोखरिणीपलासं ॥१२२८।।73 (१३२०) कायस्स फार्स गहणं घयंतितं रागहेउं तुमणुममा तं दोसहेउं अमणुनमाहु समो यजो तेसुस वीयरागो ॥१२२९।।74 (१५२१) फासस्स कार्य गहणं वयंति कायस्स फासंगहणं वयंति रागस्स हेउं समणनमा दोसस्स हेउं अमणत्रमाह (१५२२) फासेसुजो गेहिमुवेइ तिव्वं अकालिये पावइसे विणासं रागाउरे सीयजलालवसन्ने गाहागहीए महिसे विवने ॥१२३१-78 (१३२३) जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं दुइंतदोसेण सएण जंतून किंचि फासं अवरुज्झई से ॥१२३२77 ॥१२३०1176 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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