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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१२३४1-79 ॥१२३६/81 अपापणं-१२ (११२१) एगन्तरत्ते ईरंसि फासे अतालिसे से कुणी पओसं दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥१२३३॥ 78 (१३२५) फासाणुगासाणुगएयजीवे घराघरे हिंसइऽणेगरुवे। चित्तेहि तै परितावेइबाले पीलेइ अत्तगुरु किलिडे । (१५२६) फासाणुवाएण परिग्गहेण उप्पायणे रक्खणसन्निओगे वए विओगे य कई सुई से संभोगकाले य अतितलामे ।।१२३५/-80 (१३२७) फासे अतितेप परिरगहप्पि सत्तोवसतो न उवे तुर्द्धि अतुष्टिदोसेण दुही परस्स लोमाविले आययई अदत्तं (११२८) तण्हाभिमूयस्स अदत्तहारिणो फासे अतित्तस्स परिग्गहेप मायामुसं वाइ लोभदोसा तत्वावि दुक्खा न विमुबई से ॥१२३७1-82 (१३२९) मोसस्स पच्छा पपुरत्यओ य पओगकाले यदुही दुरते एवं अदत्ताणि समाययंतो फासे अतितो दुहिओ अणिस्सो ॥१२३८11-83 (१५३०) फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि तत्योवमोगेवि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएणं दुक्खं ॥१२३९।-84 (१३५१) एमेव फासम्मि गओ पओसं उयेइ दुक्खोहपरंपराओ पदुद्दचित्तोयविणाइ कम्मंजं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥१२४०-85 (१३५२) फासे विरत्तो मणुओ विसोगोएएणदुक्खोहपरंपरेण नलिप्पई भवमझेविसंतोजलेण या पोक्खरिणीपलासं ॥१२४१1-88 . (५५) मणस्स मावं गहणं ययंतितं रागहेतु मणुनमाहु तं दोसहेउं अमणुनमाहु समोय जो तेसुस दीयरागो (१५) भावस्स मणं गहणं वयंतिमणस्स भावंगहणं वयंति रागस्स हेउं समणुनमा दोसस्स हेउं अमणुनमाहु (१३४५) भावेसुजोगिद्धिमुवेइ तिव्वं अकालियं पावाइ से विणासं रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे करेणुमग्गावहिए यनागो 1197YYILD (१५५६) जे याविदोसं समुवेइ तिव्वं तंसिक्खणे से उउयेइ दुखं दुईतदोसेण सएण जंतून किवि भावं अवरुज्झई सो ॥१२४५1-90 (१३) एगंतरते ईरसि भावे अतालिसे से कुणई पओसं दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले न लिप्पई तेणमुणी विरागो |१२४६1-01 (१५५८) मावानुगासानुगए यजीवे चराचरे हिंसइऽणेगरुवे चित्तेहि ते परितावेइ बाले पीलेइअत्तद्वगुरु किलिडे ॥१३४७1182 (१३) भावाणुवाएण परिगहेण उपायणे रक्खणसत्रिओगे बए विओगे यकईसह से संभोगकालेपअतितलामे ॥१२४८1193 (१३४०) मावे अतिते य परिगहेय सत्तोवसतो न उयेइ तुर्द्धि । अतुष्टिदोसेण दुही परस्स लोमाविले आययई अदतं ( ११) तण्हामिपूयस्स अदत्तहारिणो मायेअतित्तस्स परिगहे य मायमुसं वइ लोभदोसा तत्यावि दुक्खा न विमुघईसे ॥१२५०।-95 ||१२४२187 ||१२४३1488 11१२४९।-04 For Private And Personal Use Only
SR No.009773
Book TitleAgam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages114
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 43, & agam_uttaradhyayan
File Size2 MB
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