________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||593 / 1-592 // 295 // भा.-206 ||594||-593 296|| भा.-298 ॥२९७॥मा.-297 // 298) पा.-298 // 299 // मा.-299 // 300 / पा..300 गाहा - 914 (114) विहिगहि विहिमुत्तं अइरेगं मत्तपाण भोत्तव्यं विहिगहिए विहिभुत्ते एत्य यचडरोभवे भंगा (955) उगमदोसाइजढं अहया बीयं जहिं जहापछि इय एसो गहणविहीं असुद्धपच्छायणे अविही (976) कागसियालक्खइयंदविअरसंसव्वओ परापर्ट एसो उ भवे अविही जगहिअंभोयणमि विही (917) उधिणइव विद्वानोकामोअहवावि विक्खिरइसव्वं विपेक्खइय दिसाओ सियालो अन्नोन्नहिं गिण्हे (918) सुरही दोश्चंगठा छोणं दवं तु पियइ दयियरस हेहोवरि आमटुंइय एसो भुंजणे अविही (919) जह गहिअंतह नीयं गहणविही भोयणे विही इणमो उक्कोसमणुक्कोसं समकयरसंतु मुंजेजा (920) तइएवि अविहिगहिविहिभुत्तं तं गुरुहिऽणुत्रायं सेसा नाणुनाया गहणे दत्ते यनिङ्गुहणा (921) अहवावि अकरणाए उबट्ठियं जाणिऊण वल्लाणं घटेउं दिति गुरू पसंगविणिवारणहाए (122) घासेसणाय एसा कहिया भे धीरपुरिसपत्रता संजमतबड्ढगाणं निग्गंधाणं महरिसीणं (923) एवं घासेसणविहिं जुंजतंता चरणकरणमाउत्ता साहू खवंति कम्मं अणेगभवसंचियमनंत (124) एत्तो परिठ्ठवणविहिं योच्छामि धीरपुरिसपनत्तं जंनाऊण सुविहिया करेति दुक्खक्खयं धीरा (125) मत्तहिअ उब्वरि आइव अभत्तद्धियाण जं सेसं संबंधेणाणेण उ परिठावणिआ मुणेयव्या (923) सा पुण जायमजायाजाया मूलोत्तरेहि उ असुद्धा लोमातिरेगगहिया अमिओगकया विसकया या (927) मूलगुणेहिं असुद्धंजं गहिअंमत्तपाण साहूहिं एसा उ होइ जाता बुच्छंसि विहीऍ योसिरणं (928) एगंतमणावाए अधिते थंडिले गुरुवार आलोऍ एगपुंजं तिहाणं सावणं कुञ्जा (129) लोमातिरेगगहिअं अहव असुद्धं तु उत्तरगुणैर्हि एसावि होति जाया वोछंसि विहीऍयोसिरणं (950) एगंतमणावाए अधित्ते यंडिले गुरुवढे आलोए दुनिपुंजा तिहाणं सावणंकुला (151) दुविहो खलु अमिओगो दब्वे भावे यहोइ नायव्यो दव्यंमि होइ जोगोविझा मंताय भावंमि ॥३०१॥पा.-301 302 // मा.-302 ३०३||पा.-303 // 30 // मा.-304 // 595||-594 // 305 // मा.-305 / / 596||-305 // 306 / / पा.-300 // 597||-698 1159811-597 For Private And Personal Use Only