________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहनिमुत्ति - (122) // 599 // -598 ||600 / -599 // 601 // -800 / / 602 // -801 // 603||-802 ||604 // -603 ||605||-804 606|-805 // 607||-800 (932) विझाएँ होअगारी अवियत्ता सा य पुच्छए चरिअं अभिमंतणोदणस्स उ अनुकंपणमुज्झणं च खरे (933) बारस्स पिणंभि अपुच्छणकहणं च होअगारीए सिद्दे चरियादंडोएवं दोसा इहपि सिया (934) जोगमि उ अविरइया अज्झुवत्रासरूवभिक्खुभि कडजोगमणिच्छंतस्स देइ भिक्खं असुभभावे (935) संकाए स नियहोदाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे तेसिपि असुममायोपुच्छा उ ममापि उग्झयणा (956) एमेव विसकर्यमिविदाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे गंघाई विनाए उज्झगमविही सियालयहे (937) एवं विजाजोए विससंजुत्तस्स बावि गहियस्स पाणचएविनियमुझणाउवोच्छं परिठ्ठवणं (938) एगंतमणावाए अनित्ते थंडिले गुरुवइठे छारेण अक्कमित्ता तिहाणं सावणं कुञ्जा (932) दोसेणजेणदुई तु भोयणं तस्स सावणं कुञा एवं विहिवोसढे वेराओ मुच्चईसाहू (940) जावइयं उवउजइ तत्तिअमिते विगिचणा नस्थि तम्हापमाणगहणं अरेग होज उइमेहि (141) आयरिए पगिलाणे पाहुणए दुल्लमे सहसदाणे एवं होइ अजाया इमा उ गहणे विही होइ (942) जइ तरुणो निरुवहओ पुंजइ तो मंडलीइआयरिओ अपहुस्स बीलुगडणं एमेव य होइ पाहुणए (943) सुत्तत्यथिरीकरणं विणओ गुरुपूय सेहबहुमाणो दाणवतिसद्धवुड्ढीबुद्धिबलवद्धणंचेब (944) एएहिं कारणेहि उ केइ सहुस्सवि वयंति अनुकंपा गुरुअनुकंपाए पुणगच्छे तित्थेय अनुकंपा (945) सति लामे पुण दब्वे खेत्तेकाले यमावओ चैव गहणं तिसु उक्कोसं पावे जंजस्स अनुकूलं (946) कलमोतणो उपयसा उक्कोसो हाणि कोवुमजी तत्यवि मिउतुप्पतरयंजत्य वजं अभियं दोसु (947) लामे सति संघाडो गेण्डएगो उइहरहासचे तस्सऽप्पणीय पञ्जत गेण्हणाहोई अतिरेगं (948) गेलन्ननियमगहणं नाणत्तोमासियपि तस्य भवे ओमासियमुव्यरिविगिंधए सेसगं मुंजे (945) दुल्लभदव्यं व सिआघयाइ घेतूण सेस मुअंति पोयं देमिव गेल्हामि यत्ति सहसा मये मरियं // 60811-807 // 609 / -808 // 610||-800 // 611||-810 // 612 / 1-811 // 307|| भा.-307 // 613||-812 // 614||-813 1E15||-814 For Private And Personal Use Only