________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मोहनिमुति - (896) // 580 / -579 // 58111-580 // 290|| पा.-290 ||291|| पा.-291 // 5811-581 ||292|| भा.-292 // 293 // भा.-293 // 294 // भा.-294 11583||-582 (896) छण्हमत्रयरे ठाणे कारणंपिउ आगए आहारेज उ मेहादी संजए सुप्समाहिए (897) वेयण वेयावचे इरियट्ठाए य संजमट्ठाए तह पाणवत्तियाए छदं पुण धम्मचिंताए (898) नस्थि छुहाएँ सरिसया वेयण भुंजेन तप्पसमणट्ठा छाओ वेयावच्चं न तरइ काउंअओभुंजे (899) इरियं नवि सोहेइ पेहाईयं च संजमं काउं थाभोवा परिहायइ गुणऽणुप्पेहासुय असत्तो (100) अहया न कुज आहारं छहिं ठाणेहिं संजए पच्छा पच्छिमकालंमि काउं अप्पक्खमखम (901) आयंके उवसग्गे तितिक्खया बंमचेरगुत्तीए पाणदया तवहे सरीरवोच्छेयणटाए (102) आयंको जरमाई राया सन्नायगा व उवसग्गा बंभवयपालणट्ठा पाणदया वासमहियाई (903) तवहेउ चउत्थाई जाव उछम्मासिओ तवो होइ छटुं सरीरवोच्छेयणट्ठया होयऽणाहारो (904) एएहि छहिं ठणेहि अणाहारो य जो मवे धम्मंनाइक्कमे भिक्खू झाणजोगरओ मवे (105) भुंजतो आहारं गुणोदयारं सरीरसाहारं विहिणाजहोवइढ़ संजमजोगाण वहणट्ठा (106) भुत्तुष्ठियायसेसो तिलंबणा होइ संलिहणकप्पो अपहुप्पन्ने अन्नपि छोढुं ता लंबणे ठवए (900) संदिट्ठा संलिहिउँ पढमंकप्पं करेइकलुसेणं तंपाउ मुहमासे बितियच्छदवस्स गिव्हंति (108) दाऊण वितियकप्पं बहिया मज्झट्ठिआ उदवहारी तो देति तइयकप्पं दोण्हं दोण्हं तु आयमणं (902) होज सिआ उद्धरियं तत्य य आयं बिलाइणो हुआ पडिदंसिअ संदिवो बाहरइतओ चउत्याई (910) मोहचिगिच्छविगिढ़ गिलाण अत्तड़ियं च मोत्तूणं सेसे गंतुं मणई आयरिआ बाहरंति तुमं (11) अपडिहणतो आगंतुं वंदिउं भणइ सो उ आयरिए संदिसह मुंज जंसरति तत्तियं सेस तस्सेव (112) अमणंतस्स उ तस्सेव सेसओ होइ सो विवेगो उ भणिओ तस्स उगुरुणा एसुवएसो पदयणस्स (913) मुत्तमि पढमकप्पं करेमितस्सेव देति तं पायं जावतिअंति अपणिए तस्सेव विगिचणे सेसं ||584||-583 // 58511-584 ||586||-885 |587||-588 // 58811-587 // 589||-588 // 59011-589 / / 59111-590 // 511-591 For Private And Personal Use Only