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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपणं-५ पडिवजिउ कामे कंपेज वा परहेज या निसीएज वा छडि वा पकरेज वा सगेण वा परगेण वा आतिए इ वा संतिए इ वा तदहुतं गच्छेज या अवलोइज वा पलोएज वा वेसग्गहणे ढोइजमाणे कोई उप्पाए इ वा असुहे दोत्रिमित्ते इ वा भवेज्जा से णं गीयत्थे गणी अन्नयरे इ वा मयहरादी महया नेउण्णं निरूवेज्जा जस्स णं एयाई परतक्केजा से णं नो पव्वावेजा से णं गुरु-पडिणीए भवेज्जा से णं निद्धम्म-सबले भवेजा से णं सव्वहा सव्व-पयारेसु णं केवलं एगंतेणं अयज-करणुञ्जए भवेज्जा से णं जेणं वा तेण वा सुएण वा विण्णाणेण वा गारविए भवेज्जा से णं संजई-वग्गस्स चउत्य-वयखण्डण - सीले भवेज्जा से णं बहुरूवे भवेज्जा २० | (८२७) से भयवं कयरे णं से-बहु-रुवे- बुधइ जे णं ओसन्न-विहारीणं ओसन्ने उज्जयविहारीणं उज्जय - विहारी निद्धम्म-सबलाणं निद्धम्भ - सबले बहुरूवी रंग-गए चारणे इव नडे | २१-१ (८२८) खणेण रामे खणेण लक्खणे खणेण दसगीव-रावणे खणेणं, टप्पर-कणणदंतुर - जरा जुण्ण गत्ते पंडर-केस- बहु-पवंच भरिए विदूसग ॥ १२३ ॥ (८२९) खणेणं तिरियं च जाती वानर-हनुमंत केसरी एस गोमाता णं से बहुरूवे ॥१२४|| (८१०) एवं गोयमा जे णं असई कयाई केई चुक्क खलिएणं पव्वावेजा से णं दूरद्धाण aaहिए करेजा से णं सत्रिहिए नो धरेजा से णं आयरेणं नो आलवेजा से णं भंडमत्तोवगरणेणं आचरणं नो पडिलाहावेजा से णं तस्स गंथसत्यं नो उहिसेजा से णं तस्स गंथ-सत्यं नो अनुजाणेज्जा सेणं तस्स सद्धिं गुज्झ-रहस्तं वा अगुज्झ-रहस्सं वा नो मंतेज्जा एवं गोयमा जे केई एव दोसविप्पमुक्के से णं पव्वावेजा तहा णं गोयमा मिस्र देसुप्पन्नं अणारियं नो पव्वावेजा एवं वेसा-सुयं नो पव्वावेजा एवं गणिगं नो पव्वावेजा एवं चक्खु-विगलं एवं विगप्पिय-कर-चरण एवं छिन्न-कण्णनासो एवं कुछ चाहीए गलमाण- सडहडतं एवं पंगुं अयंगमं मूयं बहिरं एवं अनुकूकड कसायं एवं बहु पासंड संस एवं घन-राग-दोस मोह-मिच्छत-मल-खवलियं एवं उज्झिय उत्तयं एवं पोराण निक्खुडं एवं जिणालगाई बहु देव-खलीकरण-भोइयं चक्कयरं एवं नड-नट्ट -छत्त - चारणं एवं सुयडुं चरण-करण-ज अडकायं नो पव्वावेज्जा एवं तु जाव णं नाम हीणं थाम-हीणं कुल-हीणं बुद्धि-हीणं पत्रा - हीणं गामउड - मयहरं वा गामउड-मयहरसुयं वा अन्नयरं वा निंदियाहम-हिनजाइयं वा अविणाय कुल-सहावं वा गोयमा सव्वहा नो दिक्खे नो पव्वावेजा एएसिं तुं पयाणं अन्नयर-पए खलेखा जो सहसा देसूण- पुव्वकोडी तवेणं गोयमा सुज्झेज वा न वा वि ॥ २१ ॥ (८३१) एवं गच्छ्ववत्थं तह त्ति पालेत्तु तहेव जं जहा भणियं - मल-किलेस - मुक्के गोयम मोक्खं गएऽ नंतं (८३२) गच्छंति गमिस्संति य ससुरासुर - जग-नमंसिए वीरे भुयणेक्कपायड- जसे जह भणिय-गुणट्ठिए गणिणो ॥ १२६॥ (८३३) से भययं जे णं केइ अमुणिय-समय सब्मावे होत्या विहिए इ वा अविहिए इ वा कस्स य गच्छायारस्स य मंडलि-धम्मस्स वा छत्तीसइविहस्स णं सप्पमेय-नाणग- दंसण-चरित-तववीरायास्स वा मणसा वा बायाए वा कहिं चि अन्नयरे ठाणे केई गच्छाहिवई आयरिए इ वा अंतो विसुद्ध परिणामे वि होत्या-णं असई चुक्केज वा खलेज या परूवेमाणे वा अनुठ्ठेमाणे वासे णं आराहगे उयाहु अणाराहगे गोयमा अणाराहगे से भयवं केणं अड्डेणं एवं वुझाइ जहा णं गोयमा अणाराहगे गोयमाणं इमे दुवालसंगे सुय-नाणे अणप्पवसिए अणाइ- निरणे सब्भूयत्य - पसाहगे For Private And Personal Use Only ७७ 1192411
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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