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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अञ्झयणं - १ www.kobatirth.org (२१४) दिव्वं काम-रई -सुहं तिविहं तिथिर्हेण अहद ओरालं मणसा अज्झवतो अभयारी मुणेयव्वो (२१५) नव- बंभचेर-गुत्ती- विराहए जो य साहु समणी वा दिट्ठमहवा सरागं परंजमाणो अइयरे बंभ (२१६) गणणा - पमाण-अइरित्तं धम्मोवगरणं तहा - स कसाय-कर-1 -भावेणं जा वाणी कलुसिया भवे (२१७) सावज - वइ-दोसेसुं जा पुट्ठा तं मुसा मुणे ससरक्खमवि अविदिन्नं जं गिण्हे तं चोरिकूकयं (२१८) मेहुण-कर- कम्पेणं सद्दादीण-वियारणे परिहं जर्हि मुच्छा लोहो कंखा ममत्तयं (२१९) अनूणोयरियमाकंठं भुंजे राई भोयणं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सहस्साणिट्ठ - इयरस्स रूय-रस-गंध-फरिसरस वा (२२०) न रागं न प्पदोसं वा गच्छेजा उ खणं मुनी कसाय- चउ- चउक्कस्स मनसि विज्झावणं करे (२२१) दुट्टे मणो-यती-काया दंडे नो णं पउंजए [0X-0-x-0 141 अासु पाण-परीभोगं बीय-काय संघट्टणं (२२२) अछड़ें तो इमे पावे नो णं नीसल्लो भवे एएसि महंत पावाणं देहत्यं जाव कत्वई (२२३) एक्कं पि चिट्ठए सुहुमं नीसल्लो ताव नो भवे तम्हा आलोयणं दाऊं पायच्छित्तं करेऊणं [निखिलं तय-संजमं धम्मं नीसल्लभणुचिट्ठियव्वयं ] एवं निक्कूकवड-निभं नीसल्लं काउं तवं (२२४) जत्थ जत्थोवज्रेञ्जा देवेसु माणुसेसु वा तस्य तत्युत्तमा-जाई उत्तमा रिद्धि-संपया लभेजा उत्तमं रूवं सोहरगंज णं नो सिज्झेज्जा तय्यवे पढमं अयणं समत्तं • 0-1-01-0 बीयं अज्झयणं - कम्मविदाग वागरणं -: प ड मोउ दे सो : ( २२६) निम्मूलुद्धिय- सल्लेणं सव्व-भावेण गोयमा झाणे पविसित्तु सम्मेयं पञ्चक्खं पासियब्वयं ॥२०७॥ For Private And Personal Use Only ॥२०८॥ ||२०१|| ॥२१०॥ ॥२११॥ ॥ २१२ ॥ ॥२१३ ॥ ॥२१४॥ (२२५) एयरस य कुलिहिय-दोसो न दायब्बो सुयहरेर्हि किंतु जो चेव एयस्स पुव्यायरिसो आसि तत्येव कत्यइ सिलोगो कत्थइ सिलोग कत्थइ पयक्खरं कत्थइ अक्खर -पंत्तिया कत्यइ पग - पुट्ठिया कत्यइ एग तित्रि पन्नगाणि एयमाइ - बहुगंथं परिगलियं ति |७| ॥११५॥ ।।२१६|| १५ ॥२१७॥ त्ति बेमि 11911
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
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