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॥३॥
॥४॥
पहानिसीह - २/१/२२७ (१२७) जेसण्णी जेवियाऽसणी मव्यामव्या उजे जगे
सुहत्यी-तिरियमुड्ढाऽहं इहमिहाडंति दस-दिसिं (२२८) असण्णी दुविहे नेए यियलिंदी एगिदिए
वियले किमि-कुंयु-मच्छादी पुढवादी-एगिदिए (२२१) पसु-पक्खी-मिगा-सत्री नेरइया मणुयामरा
मव्वामव्या विअत्येसुं नीरए उभय-वजिए (२३०) धम्मत्ता जति छायाए वियर्लिदी-सिसिरायवं
होही सोखंकिलम्हाणंता दुक्खं तत्य वी मये (२३१) सुकुमालंगताओ खण-दाई सिसिरं खणं
न इमं न इपं अहियासेउं सक्कीण्णं एवमादियं (२३२) मेहुण-संकप्पागाओ मोहा अन्नाण-दोसओ पुढवादिसु गएगिदीन याणंती दुक्खं सुहं
॥७॥ (२३३) परिवत्तंते अनंते वि काले बेइंदियत्तणं
केई जीवान पायेंति केइ पणाऽणादि पावियं (२५८) सी-उण्ह-वाप-विज्झडिया पिय-पतु-परखी-सिरीसिवा सिमिणते विन लमंते ते निमिसहभंतरं सुहं
॥९॥ (२३५) खर-फरुस-तिक्ख-करवत्ताइएहिं फालिजता खणखण
निवसंति नारया नरए तेसि सोक्खं कुओ भवे (२३६) सुरलोए अमरया सरिसा सव्वेसिं तत्पिमं दुहं
उवहिए वाहणताए एगो अण्णो तत्थमारुहे (२३७) सम-तुल्ले पाणि-पादेणं हाहा मे अत्त-वेरिणा
माया दंभेण घिद्धिद्विपरितप्पेहं आययंचिओ 1॥१२॥ (२३८) सुहेसी किसि-कम्पत्तं सेवा-याणिज-सिप्पयं कुव्वंताऽहनिसं मणुया धुप्पंते एसि कुओ सुहं
१३॥ (२३९) पर-घरसिरीए दिवाए एगे डझंति बालिसे अण्णे अपहुप्पमाणीए अण्णे खीणाए लच्छिए
१४|| (२४०) पुनहिं वइटमाणेहिंजस-कित्ती-लच्छीय वटा
पुन्नेहिं हायमाणेहिं जस-कित्ती-लच्छी-खीयइ (२४४) वास-साहस्सियं केईमण्णंते एमंदिनं पुणो कालं गति दुक्खेहिं मणुया पुत्रेहिं उझिया
॥१६॥ (२२) संखेवत्तमिमं मणियं सव्वेसिजग-जंतुणं
दुक्खं माणुस-जाईणं गोयम जंतं निबोधय (३४३) जणुसमयमनुभवंताणं सयहा उव्वेवियाण वि
निविण्णाणं पिदुक्खेहिं वैरगंन तहा वी भवे ॥१८॥ (२४४) दुविहं समासओ मुणसुदुक्खंसारीर-माणसं
घोर-पचंड महारोई तिविहं एक्केक्कं मये
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