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( १९६ ) पंच - महालोग पालेहिं अप्पा-पंचिंदिएहि य एक्कारसेहिं एतेहिं जं दिनं स-सुरासुरे जगे ( १९७ ) ता गोयम भाव-दोसेणं आया चंचिाई परं जेणं चउ - गइ संसारे हिंडइ सोक्खेहिं वंचिओ ( १९८) एवं नाऊण कायव्वा निच्छिय-दट-हियय-धीरिया मह- उत्तिम - सत्त-कुंते भिंदेयव्वा माया- रक्खसी ( १९९) बहवे अजय भावेणं निम्महिऊण अनेगहा विणयातीहंकुसेण पुणो माणवाइंदं वसीयरे
( २००) मद्दव -मुसलेण ता चूरे चसियरिऊं जाव दूरओ दणं कोह-लोहाही -मयरे निंदे संघड़े
(२०१) कोही यमाणो य अणिग्गहीया माया य लोभो य पवड्ढमाणा चत्तारि एए कसिणा कसाया पायंति सल्ले सुदुरुद्धरे बहुं (२०२) उवसमेण हणे कोहं मानं मद्दवया जिणे
मायं चजव-भावेण लोहं संतुट्ठिए जिणे
( २०३) एवं निजिय-कसाए जे सत्त भट्टान - विरहिए अट्ठमय-विप्पपुक्के य देखा सुद्धा लोणं ( २०४ ) सु-परिफुडं जहावत्तं सव्यं निय-दुक्कियं कहे नीसंके य असंखुद्धे निभीए गुरु-संतियं (२०५) भूणे मुद्धडगे बाले जह पलवे उज्जु-पद्धरं
अवि उप्पण्णं तहा सव्वं आलोयव्वं जहट्ठियं (२०६) जं पायाले पचिसित्ता अंतरजलमंतरे इ बा
कय मह रातोंधकारे वा जणणीए वि समं भवे (२०७) तं जहवत्तं कहेयव्वं सव्वमण्णं पि निक्खिलं
निच-दुक्किय- सुक्कियमादी आलोयंतेहिं गुरुयणे ( २०८) गुरु वि तित्ययर-पणियं जं पच्छितं तहिं कहे नीसल्ली भवति तं काउं जइ परिहरइ असंजमं (२०९) असंजमं भण्णती पावं तं पावमणेगहा मुणे हिंसा असचं चोरिक्कं मेहुणं तह परिग्गहं (२१०) सद्दा इंदिय-कसाए य मण- वइ-तणु-दंडे तहा एते पाये तो नीलो नो य णं भवे
(२११) हिंसा पुढवादि छन्मेया अहवा नव-दस- चोद्दसहाउ अहवा अगहा नेया काय-भेदंतरेहिणं
(२१२ ) हिओवदेसं पमोत्तूण सव्वुराम - पारमत्थियं
तत- धम्मस्स सव्वसलं मुसावायं अनेगहा (२१३) उग्गम-उप्पायणेसणया खायालिसाए तह य पंचेहिं दोसेर्हि दूसियं जं भंडोगरण - पाणमाहरं नव कोडीहिं असुद्धं परिघुंजतो भये तैयो
महानिसीहं - १/-/१९६
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