SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अापणं ७ : पढमा धूलिया www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४४८) गपणागमण - निसीयण-सुयणुट्टण-अनुवउत्तय-पमत्तो वियलिंदि - बि-ति- चउ-पंचेदियाण गोयम खयं नियमा ( १४४९) पाणाइवाय - विरई सिव-फलया गेण्हिऊण ताधीमं मरणावयम्मि पत्ते मरेज विरइ न खंडेज्जा (१४५० ) अलिय-वयणस्स विरई सायजं सद्यपवि न भासेज्जा पर-दव्य-हरण- विरई करेज दिन्ने वि मा लोमं (१४५१) धरणं दुद्धर - बंभवयस्स काउं परिग्गहघायं राती भोयण-विरती पंचेदिय-निग्गहं विहिणा ( १४५२) अत्रे व कोह- माणा राग-द्दोसे व आलोयणं दाउं ममकार - अहंकाए पचहियव्वे पयत्तेणं (१४५३) जह तव - संजम - सज्झाय झाणमाईसु सुद्ध भावेहिं उज्रमियच्वं गोयम विजुलया- चंचले जीए ( १४५४ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं पुढवीकायं विराहिजा कत्थ गंतुं स सुज्झिही ( १४५५ ) किं बहुणा गोयमा एत्थ दाऊणं आलोयणं बाहिर-पाणं तहिं जम्मे जो पिए कत्थ सुज्झिही ( १४५६ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं उन्हवर जालाइ जाओ फुसिओ वा कत्य सुज्झिही (१४५७ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं घाउकायं उदीरेज्जा कत्थं गंतुं स सुज्झिही (१४५८ ) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाउणं आलोयणं जो हरिय-तणं पुष्पं वा फरसे कत्थ स सुज्झिही (१४५९) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाऊणं आलोयणं अमई बी का जो कत्य गंतु स सुज्झिही (१४६०) किं बहुना - गोयमा एतअर्थ दाऊणं आलोयणं (१४६१) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाऊणं आलोयणं छक्काए जो न रक्खेजा सुहुने कत्य स सुज्झिही (१४६२) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं तस-याबरे जो न रक्खे कत्थं गंतुं स सुज्झिही ॥६९॥ For Private And Personal Use Only 11190 || ॥७१॥ ॥७२॥ ॥७३॥ १९७४ ॥ १७५॥ १७६॥ 119911 119211 वियलिंदी - बि-ति-चउ-पंवेदिय परियावेजो कत्य ससुज्झिही ॥ ८१ ॥ ॥७९॥ ||८०|| १८२॥ ॥८३॥ १२५
SR No.009768
Book TitleAgam 39 Mahanisiha Chheysutt 06 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages154
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 39, & agam_mahanishith
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy