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अापणं ७ : पढमा धूलिया
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( १४४८) गपणागमण - निसीयण-सुयणुट्टण-अनुवउत्तय-पमत्तो वियलिंदि - बि-ति- चउ-पंचेदियाण गोयम खयं नियमा ( १४४९) पाणाइवाय - विरई सिव-फलया गेण्हिऊण ताधीमं मरणावयम्मि पत्ते मरेज विरइ न खंडेज्जा
(१४५० ) अलिय-वयणस्स विरई सायजं सद्यपवि न भासेज्जा पर-दव्य-हरण- विरई करेज दिन्ने वि मा लोमं (१४५१) धरणं दुद्धर - बंभवयस्स काउं परिग्गहघायं राती भोयण-विरती पंचेदिय-निग्गहं विहिणा ( १४५२) अत्रे व कोह- माणा राग-द्दोसे व आलोयणं दाउं ममकार - अहंकाए पचहियव्वे पयत्तेणं
(१४५३) जह तव - संजम - सज्झाय झाणमाईसु सुद्ध भावेहिं उज्रमियच्वं गोयम विजुलया- चंचले जीए ( १४५४ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं पुढवीकायं विराहिजा कत्थ गंतुं स सुज्झिही ( १४५५ ) किं बहुणा गोयमा एत्थ दाऊणं आलोयणं बाहिर-पाणं तहिं जम्मे जो पिए कत्थ सुज्झिही ( १४५६ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं
उन्हवर जालाइ जाओ फुसिओ वा कत्य सुज्झिही (१४५७ ) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं
घाउकायं उदीरेज्जा कत्थं गंतुं स सुज्झिही (१४५८ ) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाउणं आलोयणं
जो हरिय-तणं पुष्पं वा फरसे कत्थ स सुज्झिही (१४५९) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाऊणं आलोयणं
अमई बी का जो कत्य गंतु स सुज्झिही (१४६०) किं बहुना - गोयमा एतअर्थ दाऊणं आलोयणं
(१४६१) किं बहुणा गोयमा एत्वं दाऊणं आलोयणं
छक्काए जो न रक्खेजा सुहुने कत्य स सुज्झिही
(१४६२) किं बहुणा गोयमा एत्थं दाऊणं आलोयणं तस-याबरे जो न रक्खे कत्थं गंतुं स सुज्झिही
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वियलिंदी - बि-ति-चउ-पंवेदिय परियावेजो कत्य ससुज्झिही ॥ ८१ ॥
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