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(१४३३) गोयमा निंदिउं गरहितं सुदूरं पायच्छितं चरेत्तु णं निक्खारिय-वत्यामिवाए खंपणं जो न रक्खए
(१४३४) सो सुरभिगंध - गब्धि-गंधोदय-विमल-निम्मल- पविते मजिय-खीर-समुद्दे - गड्डाए जइ पडइ
( १४३५ ) ता पुण तस्स सामग्गी सव्य-कम्प - खयंकरा अह हो देव-जोगा असुई-गंधं खुदुद्धरिसं ( १४३६) एवं कय-पच्छित्ते जे णं खजदीव - काय -वय-नियमं दंसण-नाण-चरितं सीलंगे वा तवंगे था
(१४३७) कोहेण व माणेण व माया लोभ कसाय-दोसेणं
रागेण पओसेण व अन्नाण-मोह-मिच्छत्त-हासेण या वि ||६०|| (१४३८) [ भएणं कंदप्पा दप्पेण] एएहिं य अण्णेहिं य गारवमालंबणेहिं जो खंडे सो सव्व-विमाणा धल्ले अप्पाणगं निरए [खिये |
महानिसीहं - ७ /-/ १४३३
( १४४१) पुढवि - दगागणि-याऊ- यणप्फती तह तसाण विविहाणं हत्थेण वि फरिसणयं वज्रेज्जा जावजीवं पि
॥५६॥
(१४४२) सी - उण्ह-खारमखित्ते अग्गी लोणूस अंबिले नेहे पुढवादीण - परोप्पर - खयंकरे बज्झ - सत्येए ( १४४३) हाणुम्मद्दणखोभण-हत्यं - गुलि - अक्खि- सोय करणेणं आवीयंते अनंते आऊ-जीवे खयं जंति (१४४४) संधुक्कण - जलपुजालणेण उज्जोय करण-मादीहिं यीयण-मण- उमावणेहिं सिहि-जीव-संघायं ( १४४५) जाइ - खयं अत्रे वि य छञ्जीय निकायमइगए जीवे जल सडुइओ विहु संघक्खइ दस- दिसाणं च (१४४६) वीचणण-तालियंटय- चामर - उक्खेव- हत्थ-तालेहिं धोवण-डेवण- लंघण - ऊसासाईर्हि वाऊणं (१४४७) अंकूर - कुहर - किसलय-पवाल- पुप्फ-फल-कंदलाईणं हत्य-फरिसेण बहवे जंति खयं वणप्फती - जीवे
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॥५७॥
॥६१॥
(१४३९) से भयवं किं आया संरक्खेयव्वे उयाहु छज्जीव-निकाय-माइ संजमं संरक्खेव्वं गोयमा जेणं छक्कायाइ- संजयं संरक्खे से णं अनंत दुक्ख-पयाचगाओ दोग्नइ-गमणाओ अत्ताणं संरक्खे तम्हा उ छक्कायाइं संजममेव रक्खेयच्चं होई ॥२१॥
॥५८॥
( १४४० ) से भयवं केवतिए असंजमद्वाणे पन्नत्ते गोयमा अनेगे असंजम द्वाणे पत्रत्ते जाय णं कायासंजम-हाणे से भयवं कयरेणं से काया संजम द्वाणे गोयमा काया संजमट्टाणे अनेगहा पत्रत्ते [तंजहा] ।२२-११
॥५९॥३
॥६२॥
॥६३॥
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॥६५॥
॥६६॥
॥६७॥
॥६८॥