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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मनो-८, अनपणं- १ गच्छिता अजवंदणं अजं वंदि नमसइ वंदिता नर्मसित्ता बहूहिं चउत्य जाव अप्पाणं भावेमाणी विहरइतएवं साकाली अञ्जा तेणं ओरालेणं [विउलेणं पयतेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं घण्णेमं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्का लुक्खा निम्मंसा अडिचम्पावणद्धा किडिकिडियाभूया किसा] धमणिसंतया जाया यावि होत्या जीवंजीवेणं गच्छर जाव सुहुहुयासणे इव भासरासिपलिच्छण्णा तवेणं तेएणं तवतेयसिरीए अईव - अईव उसोमाणी - उबसोमाणी चिट्ठइ तए ण तीसे कालीए अचाए अण्णया कवाइ पुव्यरत्तावरत्ताकाले अयमज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पञ्जित्था जहा खंदयस्स चिंता जाव अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पमायाए रयणीए जाब उट्ठम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अचंदणं अजं आपुच्छित्ता अजचंदगाए अजाए अब्मगुणायाए समाणीए संलेहणा-झूलणा-झूसियाए भत्तपाण -पडियाइ - क्खिपाए कालं अणवखमाणीए विहरित्तए ति कट्टु एवं संपेरेइ संपेहेत्ता कल्लं जेणेव अजचंदणा अज्जा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अज्जचंदणं अजं बंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं व्यासी- इच्छामि गं अजो तुमेहिं अणुणावा समाणी संलेहणा जाव विहरित्तए अहासुहं तए णं सा काली अज्जा अजचंदणाए अब्भणुग्णाया समाणी संलेहणा-झुसणा-झूसिया जाव विहरइ तए णं सा काली अज्जा अज्जचंदणाए अतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुत्राई अड्ड संवच्छराई सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता सट्ठि भत्ताई अणसणाए छेदित्ता जस्साए करीइ नागभावे जाव चरिमुस्सासेहिं सिद्धा निक्खेवओ 19७/-17 • अमे व पट अपणं समतं २० -: बी यं अज्झ य णं-सु का ली : (५१) तेणं कालेणं तणं समएणं चंपा नामं नयरी पुनमद्दे चेइए कोणिए राया तत्थ णं सेणियस्स रण्णो मज्जा कोणियस्स रण्णो चुल्लमाउया सुकाली नाम देवी होत्या जहा काली तहा सुकालीवि निक्खता जाव बहूहिं जाय तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेपाणी विहरइ तए णं सा सुकाली अज्जा अण्णा कयाइ जेणेव अज्जचंदणा अज्जा [तेणेव उद्यागया उवागच्छित्ता एवं बयासी] - इच्छामि णं अजाओ तुमेहिं अब्मगुण्णाया समाणी कणगावली -तबोकम्पं उवसंपजित्ता णं विहरित्तए एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि नवरं-तिसु ठाणेसु अट्टमाई करेइ जहिं रयणावलीए छट्टाई एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा वारस य अहोरत्ता चउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा सेसं तहेव नव वासा परियाओ जाय सिद्धा 1१८118 ● अनमे वग्गे बी अयणं समतं । - त इ यं अज्झ य णं-म हा का ली : (५२) एवं महाकाली वि नवरं-खुड्डागं सीहनिक्कीलियं तयोकम्पं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ तं जहा- चउत्यं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ छठ्ठे करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ चउत्थं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ अट्ठमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ छटुं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ दसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ अट्ठपं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ दुवालसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ दसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेड चोद्दसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ दुवालसं करेइ करेत्ता For Private And Personal Use Only
SR No.009734
Book TitleAgam 08 Antgadadasao Angsutt 08 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages42
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 08, & agam_antkrutdasha
File Size1 MB
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