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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ अंतगडदप्तामो ८/३/५२ सव्वकामगुणिय पारेइ सोलसमं करेइ करेत्ता सब्बकापगणियं पारेइ चोदसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुमियं पारेइ अट्ठारसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ सोलप्तमं करेइ करेत्ता सबकामगुणियं पारेइ सोलसमं करेइ करेत्ता सय्यकामगुणियं पारे वीसइमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ अद्वारसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ वीसइमं करेइ करेत्ता सबकामगुणियं पारेइ सोलसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ अट्ठारसमं करेइ करेत्ता सबकामगुणिय पारेइ चोद्दसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ सोलसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ बारसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगणियं पारेइ चोद्दसमं करइ करता सव्वकामगुणियं पारेइ दसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ बारसमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ अट्ठमं करेइ करेत्ता सब्बकामगुणियं पारेइ दसमं करेइ करेत्ता सव्यकामगुणियं पारेइ छई करेइ करेत्ता सव्यकामगुणियं पारेइ अमं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ यउत्थं करेइ करेत्ता सब्यकामगुणियं पारेइ छटुं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ चउत्यं करेइ करेत्ता सव्वकामगुणियंपारेइ तहेव चत्तारि परिवाडीओ एक्काए परिवाडीए छम्मासा सत्तय दिवसा चउण्हं दो वरिसा अट्ठावीसा यदिवसाजाव सिद्धा ।१९।-19 अदमे दो तइ अजापणं समुतं. -: च उ त्यं अ न्झ य ण-कण्हा :(५३) एवं-कण्हा वि नवरं महालयं सीहणिक्कीलियं तवोकम्मं जहेव खुड्डार्ग नवरंचोत्तीसइयं जाव नेयव्वं तहेव ओसारेवव्वं एक्काए वरिसं छप्मासा अद्वारस य दिवसा चउण्हं छव्यरिसादोमासाबारस य अहोरतासेसं जहा कालीए जाव सिद्धा।२०।-20 असे वरणे चउत्थं अध्ययण समर्स. -- पंच में अज्झ य णं-तुक हा :(५४) एवं-सुकण्हा वि नवरं-सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं उपसंपज्जित्ता णं विहरइ पढमे सतए एक्केक्कं भोयणस्स दतिं पडिगाहेइ एक्केक्कं पाणयस्स दोचे सत्तए दो-दो भोयणस्स दोदो पाणयस्स पडिगाहेइ तच्चे सत्तए तिण्णि-तिणि दत्तीओ भोयणस तिण्णि-तिणि दत्तीओ पाणयस्स चउत्ये सत्तए चतारि-चतारिदत्तीओ भोयणस्स चत्तारि-चत्तारिदत्तीओ पाणयस्स पंचमे सत्तए पंच-पंच दत्तीओ मोयणस्स पंच-पंच दत्तीओपाणयस्स छठे सत्तएछ-छ दत्तीमो मोयणस्सछछ दतीओ पाणवस्स सत्तमे सत्तए सत्त-सत्त दत्तीओ मोयणस्स सत-सत दत्तीओ पाणयस्स पडिगाहेइ एवं खलु एवं सत्तसतमियं भिक्खुपडिमं एगुणपत्राए रातिदिएहिं एगेणं य छन्नउएण भिखासएणं अहासुत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव अनचंदणा अज्जा तेणेव उवागया उवागच्छित्ता अन्जचंदणं अजं वंदइ नमसइ वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं अजाओ तुब्भेहिं अब्मगुण्णाया समाणी अहमियं भिक्खुपडिमं उवसंपञ्जित्ताणं विहरेत्तए अहासुहं देवाणुप्पिए मा पडिबंधं करेहि तएणं सा सुकण्हा अजा अञ्जचंदणाए अजाए अब्मणुण्णाया समाणी अवमियंभिक्खुपडिमं उवसंपनित्ता णं विहरइ-पढमे अट्टए एक्केक्कं भोवणस्स दत्तिं पडिगाहेइ एक्केककं पाणयस्स जाव अट्ठमे अट्ठए अट्ट भोयणस्सपडिगाहेइ अट्ठ पाणयस्स एवं खलु एयं अमिय भिक्खुपडिमं चउसट्टीए रातिदिएहिं दोहि य अट्ठासीएहि भिक्खाप्सएहिं अहासुत्तं आराहेत्ता जाव नवनवमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ- पढमे नवए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिपाहेइ For Private And Personal Use Only
SR No.009734
Book TitleAgam 08 Antgadadasao Angsutt 08 Moolam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Shrut Prakashan
Publication Year1996
Total Pages42
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 08, & agam_antkrutdasha
File Size1 MB
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