SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ *-*-*-*-*-* श्री उपदेश शुद्ध सार जी योग्य है। वह अन्य प्रकार जानने में आवे ऐसा नहीं है, निर्विकारी स्वसंवेदन ज्ञान से ही जाना जाता है और समस्त आत्मायें भी अपने स्वसंवेदन ज्ञान से अपने में आप ही जानने में आते हैं, ऐसा ही वस्तु स्वरूप है। आगम का निरूपण अनंत पुद्गलकर्म, विकारी अशुद्ध पर्याय है। अध्यात्म का निरूपण एक मात्र आत्मा है। दोनों का पूर्ण स्वरूप तो सर्वथा प्रकार से केवली गम्य ही है। सम्यक् मति श्रुत ज्ञान में मात्र अंश ही ग्राह्य है। अध्यात्म अर्थात् शुद्ध आत्मा, उसका जिसे भान नहीं है, उसे आगम का ही पता नहीं है। द्रव्य, गुण तो अनादि से शुद्ध रूप ही चले आते हैं तथा पर्याय में अनादि से विकार करता आ रहा है, जिसे यह समझ नहीं है वह अध्यात्मी भी नहीं है और आगमी भी नहीं है। ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव भले ही शास्त्राध्ययन द्वारा आगम व अध्यात्म के स्वरूप का उपदेश करे परंतु अंतरंग में उसे उनके मूलभाव का भासन नहीं है तो उसका उपदेश भी यथार्थ नहीं है। जो जीव शुद्ध स्वरूप का अनुभव करता है उसके ज्ञान में सकल पदार्थ प्रकाशित होते हैं। सर्वज्ञ परमात्मा की वाणी में वस्तु स्वरूप की ऐसी परिपूर्णता उपदिष्ट हुई है कि प्रत्येक आत्मा अपने स्वभाव से पूर्ण परमेश्वर परमात्मा है, उसे किसी अन्य की अपेक्षा नहीं है। प्रश्न- आत्मा, शुद्धात्मा परमात्मा है, स्वयं सिद्ध है परंतु वर्तमान में तो यह संसारी अज्ञानी मिथ्यादृष्टि हो रहा है, यह सब क्या है ? समाधान - आत्मा स्वभाव से अभी भी सिद्ध स्वरूपी शुद्धात्मा है। अपने ऐसे सत् स्वरूप को न जानने के कारण पर्याय से विकारी, संसारी हो रहा है। शुद्ध दृष्टि शुद्ध निश्चय नय से देखें तो यह आत्मा अभी भी अपने स्वरूप से शुद्ध परमात्मा है। प्रश्न- शुद्ध निश्चय नय क्या कार्यकारी है, जब तक पर्याय में शुद्धि न होवे ? समाधान शुद्ध स्वभाव, शुद्ध निश्चय नय के आश्रय से ही पर्याय में शुद्धि होती है, पर्याय के आश्रय से पर्याय कभी शुद्ध हो ही नहीं सकती । जैसे- स्वर्णकार शुद्ध सोने का स्वरूप और उसकी परख जानता है तो कितना ही सुन्दर आभूषण बना हो, वह उसमें शुद्ध सोने की कीमत करता है तथा उसकी पर्याय को गलाकर शुद्ध सोना प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार शुद्ध निश्चयनय के आश्रय से ही पर्याय में शुद्धि आती है। - १५ - गाथा- २ -- प्रश्न शुद्धात्मा परमात्मा हूँ, ऐसा कहने से क्या लाभ है ? समाधान - ऐसा कहने से कोई लाभ नहीं है परन्तु भेदज्ञान पूर्वक ऐसा अनुभव करना कि "मैं आत्मा शुद्धात्मा हूँ" यही सम्यक्दर्शन मुक्ति का मार्ग है और ऐसा अनुभव ज्ञान होने पर यह सब संसार पाप, विषय-कषाय छूट जाते हैं। प्रश्न जब आत्मा शुद्धात्मा परमात्मा है तो ऐसे चक्कर में फंसा क्यों है ? अभी संसार में पाप विषय कषाय में रत हैं और मैं आत्मा समाधान - अनादि से अपने सत्स्वरूप को भूला हुआ अज्ञान मिथ्यात्व के कारण इस चक्कर में फंसा है। प्रश्न- इन सबसे छूटने मुक्त होने का उपाय क्या है ? इसके समाधान में सद्गुरू आगे गाथा कहते हैं - " आचं अनादि सुद्धं उवइ जिनवरेहि सेसानं । संसार सरनि विरवं कम्म पय मुक्ति कारनं सुद्धं ॥ २ ।। अन्वयार्थ - (आद्यं) आत्मा को (अनादि) जिसका कोई आदि नहीं ऐसे अनादि काल से (सुद्ध) शुद्ध है (उवइडं) उपदिष्ट, कहा गया है (जिनवरेहि ) जिनेन्द्र परमात्मा ने (सेसानं) शिष्यों को, भव्य जीवों को (संसार सरनि) संसार के परिभ्रमण, जन्म-मरण के चक्र (विरयं) विरक्त होने, छूटने (कम्म षय) कर्मों के क्षय होने (मुक्ति) मुक्त होने, मोक्ष पाने (कारनं सुद्ध) शुद्ध कारण है। विशेषार्थ जिनेन्द्र परमात्मा ने समस्त भव्य जीवों को कहा है कि हे भव्य जीवो! अपने शुद्ध स्वरूप को पहिचानो। आत्मा अनादि से शुद्ध है, चैतन्य स्वरूप शुद्धात्मा में रागादिमल, कर्मादि संयोग न कभी थे, न होंगे, न हैं, न हो सकते। आत्मा परिपूर्ण शुद्ध है ऐसे अपने शुद्ध स्वभाव का सत्य श्रद्धान करो और शुद्ध स्वभाव में रहो, यह शुभाशुभ विकारी भावों को अपना मत मानो, इनमें न रमो । आत्मा मात्र परम पारिणामिक भाव वाला शुद्ध चैतन्य है, इसके श्रद्धान से ही संसार परिभ्रमण जन्म-मरण के चक्र से छूटोगे। इसी के आश्रय अज्ञान जन्य पूर्व कर्मबंधोदय क्षय होंगे। मुक्ति का एक मात्र शुद्ध कारण अपना परम पारिणामिक भाव, सिद्ध स्वरूप, शुद्धात्मा ही है। संसार परिभ्रमण से छूटने, कर्मों के क्षय होने और मुक्ति की प्राप्ति - • शुद्ध कारण निज शुद्धात्मा का श्रद्धान ज्ञान आचरण है। *
SR No.009724
Book TitleUpdesh Shuddh Sara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanand Swami
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy