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आत्म साधना का सोपान
श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ने चौदह ग्रंथों की रचना की, यह ग्रंथ आध्यात्मिक ग्रंथ हैं। लगभग पांच सौ वर्षों तक इस अमूल्य अध्यात्मवाणी को हमारे पूर्वजों ने सुरक्षित रखा । बीसवीं सदी में जब विद्वानों ने इन आध्यात्मिक ग्रंथों की टीकायें की, तब अध्यात्म का रहस्य हमारे सामने उजागर हुआ ।
पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज ने श्री जिन तारण स्वामी द्वारा रचित चौदह ग्रंथों में से छह ग्रंथों की टीकायें की हैं। जिनमें से तीन ग्रंथों की टीकायें प्रकाशित होकर स्वाध्याय हेतु उपलब्ध हो गई हैं। श्री त्रिभंगीसार जी ग्रंथ की टीका भी प्रकाशित की जा रही हैं यह सभी के लिये विशेष उपलब्धि है । पूज्य बाल ब्र. बसन्त जी महाराज द्वारा इन टीका ग्रंथों का संपादन कार्य कुशलतापूर्वक किया गया है जो हमारे लिये अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है ।
अध्यात्म की दुर्गम धारा को पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज ने इतना सहज सरल करके प्रवाहित कर दिया है कि प्रत्येक मुमुक्षु बंधु को सहजता से अध्यात्म का दर्शन हो जाता है। श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना के अंतर्गत इन ग्रंथों की टीका का प्रकाशन स्वाध्याय प्रेमी जिज्ञासु जीवों के लिये अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगा। पिछले कुछ वर्षों से तारण तरण श्री संघ के सत्प्रयासों से समाज में धार्मिक चेतना एवं जाग्रति आई है, गुरुवाणी का प्रचार-प्रसार भी हो रहा है जो हमारे लिये गौरव का विषय है ।
प्रस्तुत श्री त्रिभंगीसार जी ग्रंथ में ७९ गाथायें हैं जिनमें आश्रव एवं संवर संबंधी अनेक आध्यात्मिक गूढ़ रहस्यों का सहज सरल भाषा में प्रायोगिक विवेचन किया गया है। सभी आत्मार्थी भव्य जीव इस ग्रंथ का स्वाध्याय कर मुक्ति पथ का अनुसरण करें इन्हीं मंगल भावनाओं के साथ
भोपाल
दिनांक १ जनवरी २००९
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डॉ. दीपक जैन संपादक - तारण बन्धु (मासिक)
करणानुयोग : श्री त्रिभंगीसार
आत्म जाग्रति और सतर्कता का संदेश
श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज का सोलहवीं शताब्दी के तत्वचिंतक, जैन दर्शन के मूल सिद्धांत सूत्रों के सहज व्याख्याता और पाखंडवाद के उन्मूलक क्रांतिकारी जैन आचार्य के रूप में उल्लेख किया जाता है । आप जैनदर्शन के सम्प्रदायवाद के घेरे से सर्वथा मुक्ति के प्रबल पक्षधर थे यही कारण है कि आप जाति-पांति के बंधनों से परे मानवमात्र के तारणहार बने। श्री ठिकाणासार ग्रंथ में प्राप्त तथ्यों के अनुसार आपने पूर्वापर प्रचारित षट्दर्शन तथा तत्कालीन प्रचलित अध्यात्म और योग संबंधी विचारों तथा साहित्य का विस्तृत अध्ययन किया था। आत्म साधना के मार्ग में सर्वोपरि रहते हुए भी जैनागम के मूलाधार चार अनुयोगों के आप कुशल ज्ञाता और चिंतक थे । आपके द्वारा उपदिष्ट चतुर्दश ग्रंथों में आपके अनुभव सिद्ध सैद्धांतिक चिंतन और गहन साधना का पर्याप्त परिचय प्राप्त होता है।
सारमत के तृतीय ग्रंथ श्री त्रिभंगीसार में करणानुयोग के गतिबंध विषय से संबंधित महत्वपूर्ण सूत्रों पर गंभीरता पूर्वक विचार किया गया है, जीव की वर्तमान गति (भव) में निश्चित भोगकाल के त्रिभागों में होने वाले गतिबंध और उसके कारण, आयुबंध और उससे सुरक्षा के उपायों की चर्चा प्रस्तुत
में विस्तारपूर्वक की गई है ।
ग्रंथ की सरस और सहज टीका-स्वनाम धन्य, अध्यात्म शिरोमणी, श्री गुरुवाणी के सूक्ष्म अध्येता स्वामी श्री ज्ञानानन्द जी महाराज के अनेक वर्षों के निरंतर स्वाध्याय और चिंतन के सुफल के रूप में समाज को प्राप्त हुई है । श्री तारण साहित्य के सृजन में उनका यह योगदान सदैव स्मरणीय और अनुकरणीय रहेगा।
ग्रंथ के संपादन में अध्यात्म रत्न बाल ब. श्री बसन्त जी का योगदान आदरणीय के साथ-साथ प्रशंसनीय है ।
सिंगोड़ी (छिन्दवाड़ा ) म.प्र. दिनांक - ३९.१२.२०००
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राजेन्द्र सुमन संपादक- तारण ज्योति (मासिक)