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4 श्री आचकाचार जी
गाथा-१०१-१०५ अपना आत्महित करना है, मुक्त होना है उसे निष्प्रयोजन व्यर्थ चर्चायें तो कभी लड़ाई-झगड़े चल रहे हों (अनृतानंद असास्वतं) लूटमार द्वंद-फंद हो रहे हों करना ही नहीं चाहिये। शान्त मौन रहना ही श्रेष्ठ हितकारी है।
(कथितं असुह भावेन) इनके कहने सुनने से तीव्र अशुभ भाव होते हैं (संसारे भ्रमनं आगे राजकथा का वर्णन करते हैं
. सदा) जिससे हमेशा संसार में भ्रमण करना पड़ता है। राज्यं राग उत्पाद्यन्ते, ममतं गारव स्थितं ।
(भयस्य भयभीतस्य) लड़ाई, झगड़े, मारपीट, विदेशी आक्रमण आदि की रौद्र ध्यानंच आराध्य,राज्यं वन विसेषितं ॥१०१॥
१२ चर्चा सुनकर बहुत भय से भयभीत हो जाते हैं (अनृतं दुष भाजन) अब क्या होगा,
यह तो बड़े दु:ख के कारण बन गये (भावं विकलितं जांति) ऐसे भाव से निरंतर अन्वयार्थ- (राज्यं राग उत्पाद्यन्ते) राजकथा करने से राग पैदा हो जाता है
" विकल्पित रहते हैं (धर्म रत्नं न सूझते) फिर वहाँ अपने आत्म स्वरूप की कोई सुध यत) ममत्व आर अहकार बढ़ जाता हरा ध्यानचआराध्या नहीं रहती यह राजकथा कहने सुनने का परिणाम है। रौद्र ध्यान लड़ने, मरने-मारने के भाव चलने लगते हैं, उसी में आनंद आने लगता
विशेषार्थ- राजकथा बड़ी ही खतरनाक होती है। लड़ाई-झगड़े युद्धादि हो है (राज्यं वन विसेषितं) राज्य वैभव आदि का विशेषता से वर्णन करने से रौद्र
* रहे हों तो वहाँ हिंसा के भाव चलते हैं। राजनीति की उलट-पुलट चल रही हो तो ध्यान बढ़ता है, जिससे नरक जाना पड़ता है।
२ वहाँ छल, कपट, बेईमानी के भाव चलते हैं। अपने को कुछ लेना-देना नहीं है, कोई विशेषार्थ- विकथाओं में प्रमुख अनिष्टकारी स्त्रीकथा है। इसके बाद राजकथा)
सम्बन्ध नहीं है, परन्तु राजकथा कहने सुनने से अशुभ भाव होने ही लगते हैं। होती है, जो अनिष्टकारी राग पैदा करती है। ममत्व और अहंकार को बढ़ाती है।
हाता हा जिससे हमेशा संसार में भ्रमण करना पड़ता है। लड़ाई-झगड़े, हिंसा आदि मारपीट हिंसा रूप लड़ने, मारने-मरने के रौद्र परिणाम चलने लगते हैं। राज्य से संबन्धित
धत विदेशी आक्रमण आदि की चर्चा सुनकर सब जीव भय से भयभीत हो जाते हैं, हर प्रकार के वातावरण देश-विदेश के समाचार और वर्तमान परिस्थिति के
14 पास्यात घबराहट मच जाती है, अब क्या होगा? यह तो बड़े दुःख के पहाड़ टूट पड़े। अब अनुसार नाना प्रकार के रौद्र ध्यान रूप परिणाम चलते हैं। इसमें छल, फरेब, हमारी रक्षा कौन करेगा? ऐसे में कैसे बचेंगे, अब क्या करें? आदि नाना प्रकार के मायाचारी, भ्रष्टाचार, अनीति, अन्याय आदि के नये-नये समाचार कहने सुनने में विकल्प चिन्ता भय के भाव चलने लगते हैं, जिससे अपने आत्म स्वरूप की कोई आते हैं। जिससे जीवन में बड़ी अशान्ति विषमता पैदा होती है। आजकल रेडियो
सुध ही नहीं रहती। मैं एक अखंड अविनाशी चैतन्य तत्व भगवान आत्मा हूँ, मेरा सुनना, अखबार पढ़ना, सिनेमा आदि देखना सब इसी के अंतर्गत आते हैं।
कोई नहीं है, कुछ नहीं है। जो होना है वह सब क्रमबद्ध निश्चित है यह सब भूल जाते इनसे परिणामों में बड़ी निकृष्टता भयभीतपना आता है, यह सब अधर्म है, दुःख
हैं और इन्हीं भावों में विकल्पित होते रहते हैं। हिंसा, छल, बेईमानी आदि के नाना और दुर्गति के ही कारण हैं, आत्म कल्याण का प्रमुख बाधक कारण है और धर्म का ८
5 प्रकार के रौद्र ध्यान चलते रहते हैं जिससे दुर्गति का बन्ध हो जाता है और संसार में घात करने वाला है।
भ्रमण करना पड़ता है, निष्प्रयोजन व्यर्थ चर्चा विकथा करने का यह परिणाम है। राजकथा से और क्या होता है वह आगे कहते हैं
आगे चोर कथा के स्वरूप का वर्णन करते हैंहिंसानंदी च राज्यं च, अनृतानंद असास्वतं।
चौरस्य उत्पाद्यते भावं,अनर्थ सो संगीयते। कथितं असुह भावेन, संसारे भ्रमनं सदा॥१०२॥
असुद्ध परिनाम तिस्टंते,धर्म भाव न दिस्टते॥१०४॥ भयस्य भयभीतस्य, अनृतं दुष भाजनं ।
चौरस्य भावनं दिस्टा, आरति रौद्र संजुतं । भावं विकलितं जांति,धर्म रत्नं न सूझते ॥१०३॥
स्तेयानंद आनंद, संसारे दुष दारुनं ॥ १०५॥ अन्वयार्थ- (हिंसानंदी च राज्यं च) राज्य में, देश में, युद्ध हो रहा हो
अन्वयार्थ- (चौरस्य उत्पाद्यते भावं) चोरों की कथा कहने, सुनने से वैसे भाव
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