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O श्री आवकाचार जी
बीवनज्योति ON सब मोह-राग छोड़कर वस्तु स्वरूप समझना है और वैसा ही अपना जीवन इस पर चर्चा छिड़ गई और इसने शास्त्रों के प्रमाण देकर यह सिद्ध कर दिया बनाना है । यह मनुष्य पर्याय बार-बार नहीं मिलती।
कि जैन धर्म में तो किसी की भक्ति पूजा का विधान ही नहीं है । अपना । पद्मावती- बहिन ! तुम तो पहले से ही इस मार्ग पर चल रही हो।
आत्मा ही परमात्मा है । जो अपने आत्म स्वरूप का श्रद्धान करता है वह कमलावती- अरे ! नहीं बहिन, यह बाह्य त्याग, पूजा-भक्ति इनसे क्या होता है। सम्यक्दृष्टि, जो अपने आत्म स्वरूप को जानता है वह सम्यक्ज्ञानी और
यह तो साधन हैं, पुण्य-बंध के कारण हैं । हाँ अब अवसर मिला है , अब जो अपने आत्म स्वरूप में रमण करता है, लीन रहता है वह सम्यक्चारित्र जरूर धर्म पुरुषार्थ करना है।
है, यह मोक्ष का मार्ग है । इस विधि से यह आत्मा स्वयं परमात्मा हो जाता अच्छा चलें..... जय जिनेन्द्र..... जय जिनेन्द्र..... ।
है। किसी के पराश्रित होना ही मिथ्यात्व है । यह बाह्य क्रियाकांड, पूजन, (तीन)
विधान तो भगवान महावीर ने जैन दर्शन में बताया ही नहीं । जैन धर्म तो बाजार में दो साथियों की आपस में चर्चा
स्वतंत्रता को बताने वाला अध्यात्मवादी धर्म है, और पूरी बातें तुम विरऊ रामचन्द्र- अरे ! सुना तुमने, तारण ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने की से पूछना, उसे सब मालूम है । गाथा, शास्त्र प्रमाण सब वह बतायेगा।
प्रतिज्ञा कर ली, अब वह शादी नहीं करायेगा । बाल ब्रह्मचारी ही रहेगा और अपन तो भूल गये और इतना अपने को आता भी नहीं है । बस इस पर से धर्म प्रचार करेगा।
भट्टारक जी महाराज नाराज हो गये और कह दिया घर जाओ। मनसुख- हाँ भैया ! पर तुम्हें क्या मालूम, मैं तो साथ पढ़ता था तभी से जानता रामचन्द्र- कुछ और कहा सुनी हुई ?
हूँ, कि वह इस संसार के चक्कर में नहीं पड़ेगा। जब गुरु देव भट्टारक जी मनसुख- अरे नहीं, तारण तो बड़ा गुरुभक्त, सरल, शांत, विनम्र है, वह तो गुरुदेव महाराज से उसकी चर्चायें होती थीं, तब हम सब तो आंखें फाड़-फाड़ कर के चरण छूकर आया है और आज भी मंदिर जाता है, प्रवचन करता है। देखते थे, न मालूम कितने गूढ रहस्य शुद्धात्मा और जीव के परिणामों की रामचन्द्र- सुना तो है, बड़े अच्छे प्रवचन करता है, अब कभी हम भी सुनने जायेंगे चर्चा करता था कि भट्टारक जी महाराज भी घबरा जाते थे ।
और भैया तुम क्या कह रहे हो, तुम भी तो पाठशाला पढ़कर आये हो । रामचन्द्र- क्यों ? हमने सुना है कि भट्टारक जी महाराज ने इसे नाराज होकर : मनसुख- भैया, मैं क्या करूं? मेरी तो अभी शादी कर दी और रोजगार से लगा निकाल दिया, कह दिया तुम पढ़ चुके, अपने घर जाओ।
दिया, सो अपना काम करता हूँ और इतनी बुद्धि भी नहीं है। मनसुख- हाँ भैया ! एक दिन समयसार जी पर चर्चा चल रही थी । देखो, कौन सी 5 रामचन्द्र- अरे नहीं ! तुम भी स्वाध्याय किया करो, प्रवचन सुना करो, इससे ज्ञान 9
गाथा थी ? हाँ, समयसार जी की गाथा ३०, उसमें आया कि साक्षात् बढ़ता है। अब अपन साथ चलेंगे। भगवान केवलज्ञानी अरिहंत प्रभु के शरीर का गुणगान उनकी पूजन भक्ति मनसुख- हाँ भैया ! आप ठीक कहते हैं, अब अपन साथ चला करेंगे । प्रवचन तो वह भगवान की भक्ति नहीं है । बस, तारण पूछ बैठा, कि फिर यह क्या है ? सुबह-शाम दोनों समय होते हैं।
अच्छा चलें..... जय जिनेन्द्र..... जय जिनेन्द्र..... | ma
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