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C o श्री श्रावकाचार जी A के झूठे मोह को छोड़िये।
पर कभी ऐसी समता शांति नहीं आई, जो अभी चार-छह महिने में ही (माँ के चरणों में सिर झुकाना और चरण स्पर्श करना)
तारण के प्रवचन सुनने से समता-शांति आई है। अब कोई घबराहट, चिंता, माँ- (गद्गद् हृदय से सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद देना) बेटा ! सत्य है, यह माया मोह आकुलता, दु:ख होता ही नहीं है और अब कुछ बुरा भी नहीं लगता है।
सब झूठा है, इससे किसी का भला नहीं होगा । तू धन्य है, अपना कल्याण कर कमलावती- बहिन ! यही तो महत्व है, वीतराग देव की वाणी का श्रवण मनन ।
और हम सबके कल्याण का मार्ग प्रशस्त कर । हमारा आशीर्वाद तेरे साथ है। करो, चित्त में उतारो, वस्तु स्वरूप समझो तो चित्त में शांति होती है और बेटा ! तू अमर होवे ; पर बेटा ! हमें छोड़कर मत जाना ।
ऐसा ही जीवन बना लो तो बेड़ा पार हो जाये । तारण- नहीं माँ ! आपकी सेवा करते हुए धर्म साधना करूंगा, वीतरागी बनूंगा, पद्मावती- बहिन ! तो अब और रखा ही क्या है ? यह जीव चार गति चौरासी आपकी आज्ञा का पालन करूंगा।
लाख योनियों में अनन्त बार हो आया । सभी प्रकार के सुख-दु:ख, विषय (दो)
भोग भोगे, पर कहीं तृप्त नहीं हुआ। जब तक अपने को न जाने, अपने मंदिर में दो बहिनों की चर्चा
स्वरूप में लीन न होवे तब तक तृप्त हो ही नहीं सकता। कमलावती- बहिन ! सुना तुमने, तारण ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया है। कमलावती- बहिन ! संसार में तो कहीं सुख है ही नहीं। यह जीव तो अपने अज्ञान पद्मावती- हाँ बहिन ! मुझे तो उसकी बातों से पहले ही यह लगता था कि यह मोह में ही फंसा भ्रम रहा है । अब ऐसे सच्चे गुरू का योग बने, सच्चे वीतराग
या संसार के जाल में फंसेगा । कैसा आत्म विभोर होकर प्रवचन करताहै, देव की वाणी सुने तो सुलटे । अभी तक इस जीव ने इस देह से भिन्न अपने आत्मासामने नाचती है।
को जाना ही कहां है ? अभी तक तो शरीर, धन-परिवार, विषय-भोग के ही कमलावती- बहिन ! बड़े सौभाग्य से ऐसी बुद्धि उपजती है । लाखों करोड़ों जीवों चक्कर में भटकता फिर रहा है।
में कोई एक धर्मधारी जीव होता है ; और सैकड़ों वर्ष बाद । बहिन ! अपना पद्मावती- बहिन ! अभी तक कोई बताने वाला भी तो नहीं मिला । कैसे जानें,
भी सौभाग्य है । देखो वीरश्री एवं गढ़ाशाह तो धन्य हो गये, अमर हो जायेंगे। कैसे सुलटें ? पद्मावती- हाँ बहिन ! इसमें क्या संदेह है । अब अपने को भी पुरुषार्थ करके धर्म कमलावती- नहीं बहिन ! यह बात नहीं है । जिनवाणी तो अनाद्यनिधन है, पर मार्ग पर लगना है।
हमने ही नहीं सुना और पहले जो खुद जाने, सम्यक् दृष्टि सम्यक्ज्ञानीहोवे कमलावती- हाँ बहिन ! मैं तो जबसे तारण आया है, प्रवचन करता है, नित्य ही 5 वही तो सत्य वस्तु स्वरूप को बता सकता है । सो ऐसा योग अभी तक
प्रवचन सुनती हूँ । सौ काम छूट जायें परन्तु प्रवचन नहींछोड़ती,उससे मिला नहीं । मैं तो कहती हूँ कि तारण सम्यक्दृष्टि सम्यक्ज्ञानी वीतरागी आत्मा में बड़ी शांति रहती है।
ही है और शीघ्र ही परमात्मा बनेगा । बहिन ! अपना बड़ा सौभाग्य है पद्मावती- देखो बहिन ! जिन्दगी हो गई भगवान का पूजन और दर्शन करते हुए; जो ऐसा सुअवसर अपने को मिला । अब चूकना नहीं है, पूरा पुरुषार्थ करना है।
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