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04 श्री आपकाचार जी
गाथा-२६७-२६९ NOON बाह्य चारित्र से रहित हों वे अपात्र हैं।
जन्म-मरण का चक्कर छूट जाता है, शेष २६ लाख में-पंचेन्द्रिय तिर्यंच ४ लाख, आगे इन तीन पात्रों को दान देने की भावना और उसका महत्व वर्णन करते हैं- नारकी ४ लाख,देव ४ लाख और मनुष्य १४ लाख इस प्रकार २६ लाख शेष रहती हैं। त्रिविध पात्रं च दानं च, भावना चिंतते बुधै।
इसमें भी यदि सम्यक्दर्शन होने से पूर्व कोई नरक तिर्यंच मनुष्य आयु बांध ली हो तो सुद्ध दिस्टि रतो जीवा, अट्ठावन लष्य तिक्तयं ॥२६७॥
*वहाँ जाना पड़ता है वरना देवगति ही जाता है और मनुष्य तथा देवगति के दो, दस ७
भव में ही मोक्ष चला जाता है। नीच इतर अप तेजंच, वायु पृथ्वी वनस्पती।
सम्यक्दर्शन के धारी जो अव्रती हैं परन्तु शुद्धात्म तत्व का अनुभव करने वाले विकलत्रयस्य जोनीच,अद्रावन लण्य तिक्तयं ।। २६८॥ ८ तथा नित्य ही पात्रों को दान देते रहते हैं, वे कभी दःखों से भरी गतियों में नहीं जाते सुख संमिक्त संजुक्तं, सुद्ध तत्व प्रकासकं । है हैं, वे मानव तो सारे दुःखों से मुक्त हो जाते हैं। ते नरा दुष हीनस्य, पात्र दान रतो सदा ॥ २६९॥
जो अपने चैतन्य लक्षण निजस्वभाव को स्वीकार कर लेते हैं वे सारे दु:खों से
ॐ मुक्त जिन शुद्ध दृष्टि हैं, वे सम्पूर्ण तत्वों के ज्ञाता एक क्षण में मोक्ष (भाव मोक्ष) में अन्वयार्थ- (त्रिविध पात्रं च दानं च) तीन प्रकार के पात्रों को दान देने की
चले जाते हैं फिर उनका संसार शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। (भावना चिंतते बुधै) भावना बुद्धिमान जन करते रहते हैं (सुद्ध दिस्टि रतो जीवा)
इसी बात को रत्नकरण्ड श्रावकाचार में स्वामी समन्तभद्र जी कहते हैंऐसा दानी, जो शुद्धात्मा का श्रद्धानी सम्यक्दृष्टि है (अट्ठावन लष्य तिक्तयं) उसके
सम्यग्दर्शन शुद्धा नारक तिथंग नपुंसक स्त्रीत्वानि । चौरासी लाख योनियों में से ५८ लाख योनियों का भवभ्रमण छूट जाता है।
दुष्कुल विकृताल्पायुर्दरिद्रतां च ब्रजन्ति नाप्यवतिका ॥३५॥ (नीच इतर अपतेजंच) नित्यनिगोद७ लाख, इतर निगोद ७ लाख, जलकाय
ओजस्तेजो विद्या वीर्ययशो वृद्धि विजय विभव सनाथाः। ७ लाख, अग्निकाय ७ लाख (वायु पृथ्वी वनस्पती) वायुकाय ७ लाख, पृथ्वीकाय
महाकुला महामानव तिलका भवन्ति दर्शन पूताः॥३६॥ ७ लाख, वनस्पतिकाय १० लाख, (विकलत्रयस्य जोनी च) दो इंद्रिय २ लाख,४
जिनके सम्यक्दर्शन शुद्ध है, वे नारकी, पशु, नपुंसक, स्त्री, नीच कुल, तीनइन्द्रिय २ लाख, चार इन्द्रिय २ लाख इस प्रकार (अट्ठावन लष्य तिक्तयं) कुल
विकलांगी, अल्पायु, दरिद्र नहीं होते हैं। व्रत रहित होते हैं तो भी खोटी अवस्था नहीं ५८ लाख योनियों में सम्यक्दृष्टि जन्म नहीं लेता है अर्थात् यह ५८ लाख योनियां 5
2 पाते हैं। वे दीप्तिवान, तेजस्वी, विद्वान, वीर्यवान, यशस्वी, विजयी, सम्पत्ति के छूट जाती हैं।
धारी, उन्नतिशील, महाकुलवान, महान कार्य करने वाले श्रेष्ठ पुरुष होते हैं। (सुद्ध संमिक्त संजुक्तं) जो शुद्ध सम्यक्त्व के धारी हैं (सुद्ध तत्व प्रकासक),
सम्यक्दर्शन की शुद्धता परमोपकारिणी है। इसी बात को छहढाला में पं. दौलतराम शुद्धात्म तत्व का अनुभव करते हैं (ते नरा दुष हीनस्य) वे मानव दु:खों से छूट जाते ५जी ने कहा है। हैं (पात्र दान रतो सदा) जो सदैव पात्र दान में रत रहते हैं।
प्रथम नरक बिन षट् भू ज्योतिष, वान भवन पंढनारी। विशेषार्थ- यहाँ तीन प्रकार के पात्रों को श्रद्धा भक्ति पूर्वक दान देने की
थावर विकलत्रय पशु में नाहि,उपजत सम्यधारी॥ महिमा का वर्णन चल रहा है कि जो अव्रती सम्यक्दृष्टि हैं जिन्हें संसार के दु:खों से
तीन लोक तिहुंकाल माहिं नहिं, दर्शन सो सुखकारी। छूटना है, जो अठारह क्रियाओं का यथा शक्ति पालन करते हैं, वे पात्र दान देने की
सकल धरम को मूल यही, इस बिन करनी दुखकारी॥ सदैव भावना भाते हैं तथा अपनी श्रद्धा भक्ति शक्ति अनुसार हमेशा दान देते रहते सम्यकदृष्टि जीवों के परिणामों में सदा ही विशुद्धता रहती है तथा प्राप्त शुभयोग हैं। आत्म कल्याण के इच्छुक और मोक्षमार्गी जीवों के प्रति श्रद्धावान दान देने में
का वह सदुपयोग करते हैं, जिससे भविष्य में और उत्तम शुभयोग मिलते हैं। इसके तत्पर रहते हैं। सम्यक्दर्शन होते ही ८४ लाख योनियों में से ५८ लाख योनियों के विपरीत मिथ्यादृष्टि प्राप्त शुभयोगों का दुरुपयोग कर अपना वर्तमान जीवन दुःखमय
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