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वर्तमान चौबीसी श्री ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन, सुमति पद्मप्रभु छठे जिनेश्वर । सप्तम तीर्थंकर भये हैं सुपारस, चन्द्रप्रभ आठम हैं निवारस || पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, वासुपूज्य अरू विमल अनंत । धर्मनाथ वंदत अविनीश्वर, सोलह कारण शांति जिनेश्वर || कुन्थु अरह मल्लि मुनिसुव्रत वीसा, नमूं अष्टांग नमि इकवीसा । नेमिनाथ साहसि गिरि नेमि, सहनसील बाईस परीषह ॥ पारसनाथ तीर्थंकर तेईस, वर्द्धमान जिनवर चौबीस । चार जिनेन्द्र चहुँ दिशि गये, बीस सम्मेदशिखर पर गये || आदिनाथ कैलाशहिं गये, वासुपूज्य चम्पापुर गये । नेमिनाथ स्वामी गिरनार, पावापुरी वीर जिनराज ॥ दो धवला दो श्यामला वीर, दो जिनवर आरक्त शरीर | हरे वरण दो ही कुलवन्त, हेमवरण सोला इकवंत ॥ चौबीस तीर्थंक र मोक्ष गये, दश कोड़ाकोड़ी काल विल भये । भये सिद्ध अरू होंय अनंत, जे वन्दौं चौबीस जिनेन्द्र || वन्दौं तीर्थंकर चौबीस, वन्दौं सिद्ध बसें जग शीश । वन्दौं आचारज उवझाय, वन्दौं साधु गुरुन के पाय ||
: दोहा : देव धरम गुरू को नमो, नमो सिद्ध शिव क्षेत्र । विदेह क्षेत्र में जिन नमो, जिनके नाम विशेष ॥
चौबीस तीर्थंकर भगवान की- जय
विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थंकर सीमन्धर स्वामी जिन नमों, मन वच काय हिये में धरों। युगमन्धर स्वामी युग पाय, नाम लेत पातक क्षय जाय ॥ बाहु सुबाहु स्वामी धर धीर, श्री संजात स्वामी महावीर | स्वयं प्रभ स्वामी जी को ध्यान, ऋषभानन जी कहें बखान ।। अनन्तवीर्य सूरिप्रभ सोय, विशालकीर्ति जग कीरत होय । वजधर स्वामी चन्द्रधर नेम, चन्द्रबाहु कहिये जिन बैन । भुजंगम ईश्वर जग के ईश, नेमीश्वर जू की विनय करीश । वीर्यसेन वीरज बलवान, महाभद्र जी कहिये जान ॥ देवयश स्वामी श्री परमेश, अजित वीर्य सम्पूर्ण नरेश । विद्यमान बीसी पढ़ो चितलाय, बाढ़े धर्म पाप क्षय जाय ॥
विदेह क्षेत्र के बीस तीर्थकर भगवान की-जय