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पुर पट्टन तज...... चौपाई का अर्थश्री आदिनाथ स्वामी पुर पट्ट नगर ग्राम आदि त्याग कर विरक्त भाव से परिग्रह को छोड़ कर निर्ग्रन्थ वीतरागी होने के लिये चल दिये। समस्त राज पाट, परिवार, महल मकान, अपार धनसंपदा आदि को छोड़ दिया। अंतर में यह निर्णय था कि इन समस्त वस्तुओं में मेरा कुछ भी नहीं है। प्रभु को वैराग्य हुआ और वे तपस्या करने के लिये अयोध्या से थोड़ी दूर सिद्धार्थ वन में पहुँच गये। एक हजार वर्ष तक घोर तपशरण करके केवलज्ञान को प्राप्त किया।
पंच चेल (वस्त्र) का स्वरूप१. अंडज - रेशम से बने हुए वस्त्र । २. वुण्डज - कपास से बने हुए वस्त्र । ३. वंकज - वृक्ष की छाल से बने हुए वस्त्र। ४. चर्मज - मृग आदि पशुओं के चर्म से बने हुए वस्त्र। ५. रोमज - ऊन से बने हुए वस्त्र।
चौबीस प्रकार का परिग्रह - दस बाह्य परिग्रह - खेत, मकान, सोना, चांदी, धन, धान्य, दासी, दास, बर्तन और वस्त्र । चौदह आभ्यंतर परिग्रह - मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद।
अट्ठाईस मूल गुणपाँच महाव्रत-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह। पाँच समिति- ईर्या, भाषा, ऐषणा, आदान निक्षेपण, प्रतिष्ठापना । पाँच इन्द्रिय निरोध - स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण इन्द्रिय पर विजय । छह आवश्यक - समता, स्तुति, वंदना, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग। सात अन्य गुण - भूमि शयन, अस्नान, वस्त्रत्याग, केशलोंच, एक बार भोजन, खड़े होकर भोजन करना, अदंत धावन।
देवांगली पूजा का अर्थॐकार मयी पंच परमेष्ठी भगवान की जय हो, जय हो, जय हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो। अरिहंतों को नमस्कार हो, सिद्धों को नमस्कार हो, आचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायों को नमस्कार हो, लोक में सर्व साधुओं को नमस्कार हो। लोक में चार मंगल हैं - अरिहंत भगवान मंगल हैं, सिद्ध भगवान मंगल हैं, साधु परमेष्ठी मंगल हैं, केवली प्रणीत धर्म मंगल है। लोक में चार उत्तम हैं - अरिहंत भगवान उत्तम हैं, सिद्ध भगवान उत्तम हैं, साधु परमेष्ठी उत्तम हैं, केवली प्रणीत धर्म उत्तम है। मैं चार की शरण में जाता हूँ - अरिहंत भगवान की शरण में जाता हूँ, सिद्ध भगवान की शरण में जाता हूँ, साधु परमेष्ठी की शरण में जाता हूँ, केवली प्रणीत धर्म की शरण में जाता हूँ। अपवित्र हो या पवित्र हो सुख रूप हो या दु:ख रूप हो (अच्छी हालत हो या खराब हो, निरोग हो या रोगी हो, धनी हो या दरिद्र हो) पंच नमस्कार मंत्र का ध्यान करने से जीव सर्व पापों से छूट जाता है॥१॥ अपवित्र हो पवित्र हो या सर्व अवस्थागत हो अर्थात् बैठा हो, खड़ा हो, लेटा हो, चलता हो, खाता पीता हो या अन्य किसी अवस्था को प्राप्त होकर भी जो परमात्मा का स्मरण करता है वह बाह्य और अंतरंग से शुद्ध हो जाता है॥२॥ यह अपराजित (अ+पराजित) मंत्र सर्व विघ्नों का नाश करने वाला है और सर्व मंगलों में पहला मंगल माना गया है॥३॥ यह पंच नमस्कार मंत्र सब पापों का नाश करने वाला है और सब मंगलों में पहला मंगल है॥४॥