________________
: गाथा :
"
सूत्रं जं जिन उक्तं तं श्रुतं सुद्ध भाव संकलियं । असूत्र नहु पिच्छदि, सूत्रं ससहाव सुद्धमप्पाणं ॥
अब सिद्धान्त नाम काहे सों कहिये जामें पूर्वापर विरोध रहित सिद्धान्त रूप चर्चा हो, सप्त तत्व, नव पदार्थ, छह द्रव्य, पंचास्तिकाय ऐसे सत्ताईस तत्वों का यथार्थ निर्णय किया होय तथा आत्मोपलब्धि की वार्ता चले, ताको नाम सिद्धान्त ग्रन्थ कहिये ।
६१
(ज्ञान समु.सार गा. ५६४ )
',
आगे प्रथमानुयोग जामें २४ तीर्थकर १२ चक्रवर्ती, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, ९ बलभद्र, ऐसे ६३ शलाका के महापुरुषों की कथा का वर्णन होय ताको नाम प्रथमानुयोग ग्रन्थ कहिये । न जीव को आदि है न जीव को अंत है। चार गति चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करते अनंत काल हो गया परन्तु अपने आदि अन्त की खबर नहीं करी । आदि कब जानिये जब यह जीव नि:शंकितादि गुण सहित सम्यक्त्व को प्राप्त हो और अंत कब जानिये, जब मोहनीय कर्म को नाशकर तेरह प्रकार का चारित्र धारण करे, बाईस परीषह जीतकर, पंच चेल, चौबीस प्रकार परिग्रह त्याग, अट्ठाईस मूलगुण धार, चार घातिया कर्मों की निर्जरा कर, केवलज्ञान प्राप्त कर सिद्धस्थान को प्राप्त हो, आवागमन कर रहित हो, तब अंत जानिये | धन्य है उन आचार्यों को जिनने आदि अन्त की महिमा कही ।
.
यथा नाम तथा गुण, गुण शोभित नाम, नाम शोभित गुण । धन्य हैं वे भगवान जिनके नाम भी वन्दनीक हैं और गुण भी वन्दनीक हैं, जिनके नाम लिये अर्थ अर्थात् रत्नत्रय की प्राप्ति होय ।
दोहा : जयमाल
विघन विनासे जांय ।
नाम लेत पातक करें, तीन लोक जिन नाम की गुण अनंतमय परमपद,
"
महिमा वरणी न जाय ॥ १ ॥ श्री जिनवर भगवान ।
ज्ञेय लक्ष है ज्ञान में, अचल महा शिवथान ॥ २ ॥
अगम हती गुरू गम बिना, गुरूगम दई लखाय ।
लक्ष कोस की गैल है, पल में पहुँचे जांय ॥ ३ ॥ विधन विनाशन भय हरन भयभंजन गुरुतार । तिनके नाम जो लेत ही कठिन काल विकराल में सम्यक् भाव उद्योत कर, परम्परा यह धर्म है, ताकी नय वाणी कथित धन्य धन्य जिनधर्म को ताको पंचम काल में धन्य धन्य गुरु तार जी, तारण तुमरो नाम ।
संकट कटत अपार ।। ४ ।। मिथ्या मत रहो छाय । शिवमग दियो बताय ।। ५ ॥ केवल भाषित सोय ' मिथ्या मत को खोय ॥ ६ ॥ सब धर्मों में सार । दरसायो गुरु तार || ७ ॥
हैं
सिद्ध होत सब काम ।। ८ ।।
7
जो नर तुमको जपत जो कदापि गुरू तार
को
नहिं होतो अवतार ।
मिथ्या भव सागर विषै, कैसे लहते पार ॥ ९॥
·
,