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अनन्त वीर्य, सूरिप्रभ और विशाल कीर्ति की जग में कीर्ति हो रही है। वज्रधर स्वामी, चन्द्रधर (चन्द्रानन) और चन्द्रबाहु का जिनवाणी में कथन किया गया है। भुजंगम और ईश्वर जी जगत के ईश्वर हैं, नेमीश्वर प्रभु की मैं विनय करता हूँ। वीर्यसेन वीर्य बल से संपन्न हैं, महाभद्र जी को तीर्थंकर कहा गया ऐसा जानो। श्री देवयश स्वामी परमेश्वर हैं, अजितवीर्य पूर्णत्व को प्राप्त मनुष्यों के ईश्वर हैं। विदेह क्षेत्र में बीस तीर्थंकर सदा विद्यमान रहते हैं, ऐसी विद्यमान बीसी को भाव सहित चित्त की एकाग्रता पूर्वक पढ़ो इससे धर्म की वृद्धि होगी और पाप क्षय हो जायेंगे।
विनय बैठक का अर्थविनय पूर्वक बैठकर सत् - असत्, सच्चे - झूठे, हेय, ज्ञेय, उपादेय का विचार करके निर्णय करना, सत्य को स्वीकार करना, असत्य का त्याग करना, यही विनय बैठक का अर्थ है। जैसे अब क्या दर्शाते हैं आचार्य ? शास्त्र सूत्र सिद्धान्त का स्वरूप और अर्थ दर्शाते हैं।
सांचो देव सोई......छंद का अर्थसच्चे देव वही हैं, जिनमें जन्म जरा आदि लेशमात्र भी कोई दोष नहीं हैं। सच्चे गुरू वे हैं जिनके हृदय में सांसारिक कोई भी चाहना नहीं है। सच्चा धर्म वह है जहां करूणा दया की प्रधानता कही गई है। सच्चे शास्त्र वे हैं जिनमें प्रारंभ से अंत तक निर्विरोध एक रूप सिद्धांत का कथन है। इस प्रकार संसार में यह चार ही रत्न हैं। हे मित्र! अपने ज्ञान में इन्हें परखो और सच्चे देव, गुरू,शास्त्र, धर्म की श्रध्दा करो, मिथ्या देव, गुरू, धर्म आदि को छोड़ दो इसी में मनुष्य जन्म का लाभ है और यदि सच्चे-झूठे का मनुष्य को विवेक नहीं है तो वह पशु के समान है ; इसलिये सत्य को ग्रहण करना और असत् मिथ्या को छोड़ना यही उचित बात है और यही पारणी अर्थात् ग्रहण करने, आचरण में लाने योग्य सलाह है।
त्रिक स्वभाव और शास्त्र का स्वरूपतीन के समूह को त्रिक कहते हैं। यहाँ छह त्रिक का उल्लेख है। सच्चे देव,गुरू,धर्म । आचार, विचार, क्रिया। ज्ञान की उत्पत्ति, कर्मों की खिपति,जीव की मुक्ति। दर्शन, ज्ञान, चारित्र । कलन (ध्यान), चरन (चारित्र), रमन (स्वरूप में लीनता) । उवन दृढ़ (सम्यक्श्रद्धान में दृढ़ता), ज्ञान दृढ़ (सम्यग्ज्ञान में दृढ़ता), मुक्ति दृढ़ (सम्यक्चारित्र में दृढ़ता) जिसमें एक त्रिक या समुच्चय वर्णन हो उसे शास्त्र कहते हैं।
सूत्र नाम....... का अर्थ - सूत्र नाम किसको कहते हैं अर्थात् सूत्र का स्वरूप क्या है ? विस्तार की बात को जिसके द्वारा संक्षेप में कह दिया जाय उसे सूत्र कहते हैं। जैसे - तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्। नौ सूत्र सुधरे - श्री गुरू तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज के नौ सूत्र सुधरे, वे इस प्रकार हैं१.मन - मन के विचार पवित्र हो गये। २. वचन - वाणी से कोमल हित मित प्रिय वचन का व्यवहार होने लगा, कठोर कठिन वचन बोलना छूट गया। ३. काय - शरीर संयम, तप, साधनामय हो गया। ४. उत्पन्न - प्रयोजन भूत शुद्धात्मानूभूति की प्रगटता को उत्पन्न अर्थ कहते हैं यही सम्यग्दर्शन कहलाता है, जो उत्पन्न हो गया। ५.हित-हितकार अर्थ अर्थात् सम्यग्ज्ञान प्रगट हो गया। ६.शाह-परमात्म स्वरूप में लीनता रूप सहकार अर्थ अर्थात् सम्यक्चारित्र उत्पन्न हो गया। ७. नो-नो कर्म रूपपुद्गल वर्गणायें साधना के प्रभाव से विगसित पुलकित हो गईं। ८. भाव-भाव कर्म की धारा विशुध्द हो गई। ९. द्रव्य - ज्ञानावरणादि द्रव्य कर्मो में विशेष उपशम, क्षयोपशम और योग्यतानुरूप क्षय की स्थितियां बनीं; इस प्रकार नौ सूत्र सुधरे।