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________________ जिज्ञासा- 'नमूं अष्टांग नम इकवीसा' क्यों किया गया है ? समाधान- 'नमियो अष्टांग सिद्ध इकवीसा' चौबीसी की इस पंक्ति में २१ वें तीर्थंकर नमिनाथ का उल्लेख ही नहीं है ; इसलिये इसके स्थान पर 'नमूं अष्टांग नमि इकवीसा' प्राचीन प्रतियों के आधार पर शुद्ध किया गया है। जिज्ञासा जगदीश शब्द के स्थान पर जगशीश क्यों किया गया है ? - ५० समाधान- 'जगदीश' के स्थान पर 'जग शीश' हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर किया गया है, जिसका अर्थ है कि ‘'लोक के अग्रभाग पर वास करने वाले सिद्धों की वंदना करता हूँ ।" जिज्ञासा विद्यमान बीसी में क्या परिवर्तन किया गया है ? समाधान- शब्दों की गल्तियों को जैसे- जुग को युग, सुजाति को संजात, अनन्त वीर को अनन्तवीर्य, सूरप्रभु को सूरिप्रभ करके सही किया है। जिज्ञासा- 'ये ज्ञान दानं' श्लोक क्या पहले शुद्ध नहीं था ? समाधान- 'ये ज्ञान दानं कुरुते मुनीनां' श्लोक पहले अशुद्ध वांचन किया जाता था, इस श्लोक को शुद्ध और अर्थानुगामी किया गया है। श्लोक और अर्थ यथास्थान पर देखें । जिज्ञासा - भगवान महावीर स्वामी के जन्म स्थान का सही नाम क्या है ? समाधान- भगवान महावीर स्वामी के जन्म स्थान कुंदनपुर नगरी के स्थान पर शुद्ध सही नाम कुण्डलपुर नगरी किया गया है । जिज्ञासा- देवांगली पूजा में क्या संशोधन किया है ? समाधान- देवांगली पूजा में व्याकरण के अनुरूप आंशिक संशोधन शुद्धिकरण किया गया है जैसेअरिहंता, सिद्धा, लोगुत्तमा, लोगुत्तमो अरिहंते, सिद्धे, धम्मं आदि । जिज्ञासा - शास्त्र पूजा में क्या संशोधन हुआ है ? समाधान- शास्त्र पूजा गाथा में स्वर्ग मोक्ष संगम करणं के स्थान पर 'सग्ग मोक्ख संगम करणम्' किया गया है, जो भाषा शुद्धि के अनुरूप है। शास्त्र पूजा की दूसरी गाथा में प्राचीन प्रतियों में 'लड्ढिय' के स्थान पर 'सिद्धं' शब्द आया है और इस शब्द का भाव तथा अर्थ दोनों ही स्पष्ट हैं, अत: 'लड्ढिय' के स्थान पर 'सिद्धं' किया गया है। जिज्ञासा- गुण पाठ पूजा में कहाँ-कहाँ और किस कारण से संशोधन किये गये हैं ? - दंसण और चरितं को चरणं भाषानुगामी समाधान- गुण पाठ पूजा के पहले श्लोक में-धर्मं को धम्मं, दर्सन को भाव के अनुरूप किया है। गुण पाठ पूजा के पाँचवें श्लोक में पढ़ा जाता है- 'अनंत वीर्य अनंतरायेन' यह उचित नहीं है क्योंकि उक्त श्लोक में सिद्ध भगवान के ८ गुण किन कर्मों के अभाव से प्रगट होते हैं यह प्रसंग है इसलिये 'अनन्त वीर्य अन्तरायेन' प्रासंगिक है, जिसका अर्थ है अनन्तवीर्य नामक गुण अन्तराय कर्म के अभाव से प्रगट होता है। गुण पाठ पूजा के सातवें श्लोक में 'ए आराह अष्ट गुण' के स्थान पर 'ए आइरिय अष्ट गुण' शुद्ध है। जिसका भाव है- अहो ! आचार्य आठ गुणों का पालन करते हैं, इसमें आगे ३६ गुणों का उल्लेख है। इसी श्लोक में 'अव्वा' की जगह 'अप्पा' शब्द है जो शुद्ध है। 'होय दिढ अप्पा' का अर्थ है-आत्मा में दृढ़ होते हैं । '
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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