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सहकारं अर्थ तिअर्थ, अर्थ सहकार कलस जिन उत्तं । सुर विंजन परिनामं, सहसं अट्ठमि चौ उवन चौबीसं ॥ २ ॥ इस्ट दर्सति इन्द्र अप्प सहावेन इच्छ आछरयं । ऐरापति आयरनं कमलं सहकार जिनेन्द विंदानं ॥ ३ ॥ कलसं सहाव उत्तं, कमल सरूवं च ममल सहकारं । भय विनस्य भवियनं, धम्मं सहकार सिद्धि सम्पत्तं ॥ ४ ॥ सिद्ध सरूवं रूवं सिद्धं गुन विशेष ममल सहकारं ।
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भय षिपिय कम्म गलियं, धम्मं पय पयडि मुक्ति गमनं च ॥ ५ ॥ जनमन जैवन्त सुभावं जाता उववन्न जयकार ममलं च ।
भय षिपनिक भवियनं जय जय जयवन्त जन्म तित्थयरं ॥ ६ ॥ धम्म सहाव संजुत्तं तारन तरनं च उवन ममलं च । लोयालोय पयासं, तिअर्थ आयरन सिद्धि सम्पत्तं ॥ ७
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५. स्वामी तारन देवा फूलना ( फूलना क्र. १२९)
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( विषय : कलन चरन रमन महिमा)
जिनु जिनयति जिनय जिनय जिनु उवने जिनु मुक्ति पंथ दतु । सब्द प्रिये सुइ सुयं उवन जिनु जय जयो सिद्धि संपत्तु, हो स्वामी तारन देवा ॥ १॥ उत्पन्न अर्क दरसाइयौ, जिन स्वामी पाये, हो स्वामी तारन देवा ।
अलष लषाउन पाये, हो स्वामी तारन देवा । अगम गमाउन हो स्वामी तारन देवा ।
असह सहाउन हो स्वामी तारन देवा ॥ २ ॥ ॥ आचरी ॥ रमाई, तारन तरन समत्थु I मिली, सिहु समय सिद्धि संपत्तु ॥ ३ ॥ ॥ हो स्वामी ॥
जिन न्यान विन्यानह उवन जिन दिप्ति दिस्टि उत्पन्न
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अर्क तु संपत्तु
रम रमयति रमन रमन जिन उवने, उव उवन अर्क अर्क सुभावे उवन अर्क जिनु उव उवन सिद्धि ॥ हो स्वामी ॥ चर चरन उवन सुइ चरन उवन जिनु कलि कलिय अर्क जिन उत्तु जिन जिनय सहावे उवन कलन जिनु कलि चरन सिद्धि संपत्तु ॥ ५ ॥ ॥ हो स्वामी ॥
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कलि कलन कलिय उव कलिय कलन जिनु, कलि कलिय अर्क जिन उत्तु । जिन जिनय सहावे उवन कलन जिनु कलि उवन सिद्धि संपत्तु ॥ ६ ॥
॥ हो स्वामी ॥