SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भजन १० पढ़ कर चौदह ग्रन्थ गुरु के रंग में हो जा मतवाला । फिर हो जा अलमस्त गुरु के रंग में हो जा मतवाला ॥ मस्त हुए दीवान गढ़ाशाह देश निकाला कर डाला । मस्त हुए गुरु तारण बाबा जहर का प्याला पी डाला ॥ मस्त हुए उस्ताद लोकमन मक्का मदीना तज डाला । मस्त हुए ब्रह्मचारी शीतल सब ग्रन्थों को मथ डाला ॥ वीर अनंते मोक्ष जायेंगे यही धर्म सबसे आला । पढ़ कर चौदह ग्रन्थ गुरु के रंग में हो जा मतवाला ॥ भजन- ११ - · अब नेम जी मिलत नइयां वन में मिलत नइयां वन में। ढूंढन कहाँ जाऊँ नेम जी मिलत नइयां वन में । ढूंढ़त ढूंढ़त हम फिर आये, ए अब कहूँ न मिले महाराज ॥ नेम जी मिलत नइयां ॥ इत जूनागढ़ उत है द्वारका, ए अब बीच में गढ़ गिरनार ॥ नेम जी मिलत नइयां ॥ ढूंढत ढूंढत हमहूँ को मिल गये, एवे तो ठाढ़े हैं ध्यान लगाय ॥ नेम जी मिलत नइयां ॥ ठांड़ी राजुल दोइ कर जोड़े, ए अब दीक्षा देओ महाराज, नेम जी मिलत नइयां ॥ भजन १२ लद जैहे बंजारो, एक दिन लद जैहे बंजारो ॥ को हैजाको लाद लदैया, को है हांकन हारो....... मन है जाको लाद लदैया, तन है हांकन हारो....... झूठ कपट कर माया जोड़ी, कर कर के हित गाढ़ो....... तू जानत है संग चलेगी, पैसा नहीं है तिहारो....... देखत को परिवार घनेरो, साथी न संगी तिहारो........ जा काया को करत भरोसो, वो ही करत किनारो... कहें जिनदास आस जा पद की, छोड़ो जग को सहारो....... — १२२
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy