________________
१२१
६. तारण तरण तारण तरण जिहाज, हमारे गुरु तारण तरण जिहाज || डूबत हौं भव सागर मांहीं, पार लगा दीजो आज........... क्रोध मान माया लोभ विवर्जित, करत आपनो काज........ कामी क्रोधी पतित उबारे, सारे सबके काज....... माखन की अरजी चित धरियो बांह गहे की लाज.........
७. मगन रहो रे मगन रहो रे जिया ! ले जिन नाम मगन रहो रे ॥ टेक ॥ कोई भयो राजा कोई भयो रंक, कोई भयो जोगीरा भ्रमें चारों खण्ड॥१॥ तन भयो राजा मन भयो रंक,जीव भयो जोगीरा भ्रमे चारों खण्ड ॥२॥ समव शरण जहाँ रच्यो है कुबेर, द्वादस कोठा वेदी के फेर ॥ ३ ॥ ता थैई ता थैई ता थैई तास, कमल की पंखुड़ी में नाचे देवीदास ॥४॥
८. छोड़ दे अभिमान छोड़ दे अभिमान जिया रे ! छोड़ दे अभिमान | टेक ॥ कहाँ को तू है कौन है तेरो, ये सब ही मेहमान....जिया.... तेरे देखत सब ही चले जै हैं, थिर नाहीं जा थान....जिया.... काम क्रोध हृदय से त्यागो, दूर करो अज्ञान....जिया.... त्याग करो जा लोभ माया, मोह मदिरा को पान....जिया.... राजा रंक सबई चल जै हैं, देखत तेरे नैन....जिया.... कहें देवीदास आस जा पद की, आतम को पहिचान....जिया.....
9. चित चालो रे जिया चित चालो रेजिया मन लागो रे भैया, गढ़ गिरनारीमन लागो रे भैया।। टेक॥ गढ़ गिरनारी के ऊंचे पहाड़, जहाँ विराजे श्री नेम जी कुमार || मड़वा माड़न चले जादो राय, पशु जीवन मिल करी है पुकार || मौर जो पटको मड़वा मांहिं, कंकण तोर चढ़े गिरनार ॥ राजुल सखियाँ लई हैं बुलाय, चलो सखी नेम जी को लाऐं मनाय ॥ मैं बारे की बालक अजान, कबहुं न लीना चन्दा प्रभु जी का नाम || ठाड़ी राजुल दोइ कर जोड़, कर्म लिखंती मिटै नहीं कोई ॥ कहत विनोदी सुनो यदुराय, राज छोड़ वैराग्य सिधाय ॥