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________________ ११८ (४) अब तो संयम धार ले भैया, वृथा समय काहे खोवत रे ॥ सत्गुरु तोहे कब से जगा रहे, मोहनींद काहे सोवत रे ॥ देखले कोई काम न आवे, अपनी अपनी सोचत रे..... जैसो करो थो वैसो ही मिल रहो, काहे दुःखी तू होवत रे ॥ जैसा करोगे वैसा भरोगे, पाप बीज काहे बोबत रे..... संयम धर विषयनि को छोड़ दे, जन्म सफल तब होवत रे ॥ अब मत हिचके कर पुरुषार्थ, समय चूक सब रोवत रे..... हिम्मत करले महाव्रत धर ले, मोही काहे मोहत रे ।। तू है अकेला शुद्ध स्वरूपी, तारण गुरु संबोधत रे..... जागो भाई भोर हो गया, प्रभ से नेह लगाओ रे । अपने आतम परमातम की, पल भर तो सुध लाओ रे ॥ दिन भर तो गोरख धंधे में, तुमने समय व्यतीत किया । अब कुछ आगे की भी बंदे, अपनी राह बनाओ रे.... तुम हो परमब्रह्म परमेश्वर, पर अपने को भूल रहे || होले होले अंतरतम से, कर्म कलंक मिटाओ रे.... उस भव में जो कुछ बोया था, आज कि चंचल काट रहे || अब कुछ करनी ऐसी करलो, उस भव में सुख पाओ रे.... (६) भोर हुआ अब तो राम, अपने नयन खोलिए । बोल रहे विहग बोल, आप भी कुछ बोलिए । बीते कितने बसन्त, रीते पल छिन अनन्त ॥ कितना तुम चले कन्त, आज तक टटोलिये.... मानव का तन महान, कंचन घट के समान ॥ विषयों सा नाशवान, विष न इसमें घोलिये.... आतम के छोड़ गीत, पुदगल से जोड़ प्रीत ॥ करते कैसी अनीत, मीत जरा तौलिये.... चंचल मन है मतंग, करिये न इसका संग ॥ अपनी ही ले पतंग. अपने में डोलिये....
SR No.009719
Book TitleMandir Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasant Bramhachari
PublisherAkhil Bharatiya Taran Taran Jain Samaj
Publication Year
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size1 MB
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