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[मालारोहण जी
गाथा क्रं. ५ ]
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वस्तु का, पर जीव का, अपने से कोई सम्बन्ध नहीं है। एक दूसरे में अत्यन्त अभाव है। इसलिए पर वस्तु में किसी का कोई पुरुषार्थ नहीं चलता। सेठ जी ने कहा- वह साधु कहाँ रहता है ? चलो, उससे ही यह चर्चा करेंगे। नौकर ने कहा कि अगले गांव के बाद थोड़ी दूर जंगल में रहते हैं।
सेठ जी वहाँ से आगे बढ़े, दूसरे गाँव में पहुंचे, वहाँ क्या देखते हैं कि एक वृद्ध किसान अपने घर के सामने बैठा अर्थी बना रहा है, सेठ जी ने पूछायह क्या कर रहा है ? इसके घर में कोई मरा नहीं है फिर यह अर्थी क्यों बना रहा है? नौकर सेठजी को लेकर वृद्ध किसान के पास गया और पूछा कि यह क्या कर रहे हो? किसान ने बताया मेरा नौजवान बेटा खेत पर गया है हल चला रहा है, अभी थोड़ी देर बाद बैल के सींग मारने से उसकी मृत्यु हो जायेगी, उसकी तैयारी कर रहा हूँ, जिससे रात्रि न होने पावे वरना लाश को रात भर रखना पड़ेगा।
सेठ जी सुनकर घबरा गये, बोले-कैसे पागल आदमी हो अरे ! अपने बेटे को बचाने का पुरूषार्थ करो, उसे खेत से वापिस बुला लो, बैलों को दूर रखो। वृद्ध बोला-जो होने वाला है उसे टाला नहीं जा सकता, मेरे गुरूदेव ने बताया है, वह सत्य है, ध्रुव है, प्रमाण है। सेठजी ने कहा-यह कायरता है, मूर्खता है, पुरूषार्थहीनता है इससे तो लोग अकर्मण्य बन जायेंगे।
बताओ, तुम्हारा लडका कहाँ है, किस खेत पर है? मैं उसे बचाकर लाता हूँ। गाड़ी बैल को वहीं खोल कर सेठ जी नौकर के साथ खेत पर गये, देखा वह नौजवान - भजन गाता हुआ हल चला रहा था। सेठ ने उसे अपने पास बुलाया, नौकर को हल खोलकर बैलों को दर बांधने को कहा और उस लड़के को लेकर घर की तरफ रवाना हुआ, सेठजी बातचीत करते अपने मन में प्रसन्न होते घर के पास आ गये, पर जैसे ही लड़का गाड़ी के पास से निकलने लगा वैसे ही एक बैल ने सींग मार दिया, सींग लड़के के पेट में घुस गया और वह वहीं गिरकर मर गया । सेठजी ने यह सब देखा तो उनके होश गायब हो गये, घबरा गये और किसी झंझट में न फंस जायें इसलिये गाड़ी जोतकर वहाँ से रवाना हो गये। नौकर से कहा कि उस साधु के पास ले चलो,
यह सब तो बड़ा विचित्र हो रहा है।
नौकर सेठजी को लेकर थोड़ी देर बाद साधु के पास पहुँच गया, गाड़ी ढील कर सेठ जी, साधु के पास पहुँचे नमस्कार किया और कहा-महाराज यह सब क्या हो रहा है? आपकी ऐसी चर्चा से तो लोग निरूद्यमी, अकर्मण्य, पुरूषार्थहीन प्रमादी हो रहे हैं।
साधु ने कहा कि सेठ जी इसमें मेरा क्या है - जैसा जिनवाणी में आया, जिनेन्द्र परमात्मा ने कहा है वैसा मैं बता रहा हूँ।
अरे! यह वीतराग देव की वाणी-जिनवाणी तो परम शांति और परम आनन्द को देने वाली है। इस जीव के संसार के जन्म मरण के चक्र को मिटाने वाली है। जीव को अपने सत्स्वरूप परमात्म तत्व को बताने वाली और संसार के कर्तृत्व के अहंकार से छुड़ाकर, परम शांति, परमानंदमय करने वाली है। अभी तक इस जीव ने पर के कर्तृत्व के अहंकार में ही अपना जीवन गंवाया है। स्व-पर का ज्ञान नहीं किया, अपने सत्स्वरूप को नहीं जाना इसीलिए ऐसा मर रहा है। स्व-पर का यथार्थ निर्णय करे, वस्तु के स्वरूप को जैसा का तैसा जाने माने, तो परम शान्तिमय हो जाये, मुक्ति का मार्ग बन जाये। सेठ जी ने कहा कि महाराज यह सब कैसे क्या हो रहा है? इसका रहस्य बताइये, वरना इससे तो बड़ी भ्रान्ति पैदा हो रही है।
साधु ने कहा-सेठजी अज्ञान दशा में ऐसा ही होता है। सत्य को सुनना, समझना और स्वीकार कर लेना बड़ा कठिन है जो इसे सुन समझ कर स्वीकार करते हैं वह नर ही शूरवीर, पुरूषार्थी हैं जो महावीर बनते हैं।
इस शरीर में शरीर से भिन्न चैतन्य तत्व जीवात्मा है, वह मैं हूँ-यह शरीरादि मैं नहीं हूँ, यह मेरे नहीं हैं। इस बात को स्वीकार कर लेने वाला ही सम्यग्दृष्टि नर है और यही जीव का सच्चा पुरूषार्थ है। यह जीव आत्मा, अरस अरूपी ज्ञानानन्द स्वभावी परमात्म तत्व मात्र ज्ञायक स्वभावी है। यह सिर्फ देखता जानता है, कुछ करता धरता नहीं है। अपने सत्स्वरूप को भूलकर यह जीव पर के कर्तृत्व में मर रहा है जबकि प्रत्येक द्रव्य का, प्रत्येक जीव का जिस समय जैसा होना है वह अपनी तत्समय की योग्यतानुसार हो