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[मालारोहण जी
गाथा क्रं. ४ ]
यहाँ कोई प्रश्न करता है कि यह सब सुविधा महिमा सम्यग्दृष्टि ज्ञानी की अपेक्षा ही बताई है पर हम अज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीवों का क्या होगा? हम भी इस संसार के दु:खों से छूट सकते हैं कि नहीं?
समाधान - भाई अज्ञानी मिथ्यादृष्टि ही तो सम्यग्दृष्टि ज्ञानी होता है। यह कोई अलग से पैदा होकर नहीं आता । जो जीव भेदज्ञान का अभ्यास करता है, जिसे संसार के जन्म-मरण से ऊब आ गई, जो रात-दिन के भय, चिन्ता, विकल्पों से छटना चाहता है उसके लिये तो यह मुक्ति का मार्ग बताया जा रहा है कि तीसरी गाथा के अनुसार वह इस शरीरादि से भिन्न मैं एक अखंड अविनाशी चेतन तत्व भगवान आत्मा हूँ ऐसा अनुभूति युत सत्श्रद्धान करे वही तो सम्यग्दृष्टि ज्ञानी होता है फिर इसके बाद का यह क्रम अपने आप बन जाता है। संसार में प्रत्येक जीव के साथ यह पाँच बातें लगी हैं- (१) मिथ्यात्व (२) ममत्व (३) कर्तृत्व (४) चाह (५) लगाव ।
इनको तोड़ना, छोड़ना, इनसे हटना बचना ही आनन्द में रहना मुक्ति का मार्ग है इसी से इस संसार से छूट सकते हैं।
धर्म की चर्चा सामूहिक होती है चलना व्यक्ति गत होता है।
इसके लिये ही यह स्वाध्याय सत्संग किया जाता है और अपने पुरुषार्थ के बल पर इनको जीता जाता है, इसके लिये एक कथानक के माध्यम से समझने का प्रयास करें जिससे अपनी बात स्पष्ट हो जायेगी।
दिल्ली का राजा पृथ्वीराज चौहान था जो बड़ा शूरवीर योद्धा था। विदेशी राजा मोहम्मद गौरी ने दिल्ली पर आक्रमण किया पर सत्रह बार उसे पराजित होना पड़ा, अन्त में संयोगिता की आसक्ति और जयचन्द के छल के कारण पृथ्वीराज चौहान को पराजित होना पड़ा। मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर अपने देश ले गया और जेलखाने में बन्द कर दिया। एक दिन मुहम्मद गौरी पृथ्वीराज से मिलने आया और उसने सामान्यत: कुशल पूछी, पृथ्वीराज चौहान ने कडक कर कहा कि तुझे एक राजा से बोलने का भी तमीज नहीं है और जैसे ही उसकी ओर घूरकर देखा मुहम्मद गौरी डर गया, काँपने लगा और तुरन्त ही वहाँ से चला गया।
जल्लादों को हुक्म दिया कि लोहे के सूजे गरम करके इसकी (पृथ्वीराज की) आखें फोड़ दी जायें, जल्लादों ने वैसा ही किया। अब पृथ्वीराज चौहान हथकड़ी बेड़ियों से जकड़ा हुआ और आखें फूटजाने से बड़ा दु:खी और परेशान रहने लगा। उसका एक मित्र चन्द्रवरदाई जो कवि भी था उससे मिलने आया, कोशिश करके पृथ्वीराज से मिला । पृथ्वीराज ने कहा कि मित्र ! अब तो मुक्त होना है, इस प्रकार हथकड़ी बेड़ियों में जकड़े हुये पराधीन रहते नहीं मरना। कोई ऐसी युक्ति करो कि इस बंधन से मुक्त हो जायें । पृथ्वीराज चौहान लक्ष्यभेदी वाण चलाना जानता था, वह इसमें बहुत ही निपुण था। चन्द्रवरदाई ने कोशिश कर मुहम्मद गौरी को इसके लिये तैयार कर लिया कि वह पृथ्वीराज चौहान का यह कर्तव्य देख ले, दिन निश्चित किया गया, सारे राज्य के लोग इसको देखने आये। एक बहुत ऊँचा मंच बनाया गया जिस पर मुहम्मद गौरी बैठा, पृथ्वीराज चौहान आया चारों तरफ रस्सियों से कसा हुआ, हथकड़ी बेड़ियों में बंधा जकड़ा हुआ, आंखें फूटी हुई, इस पर भी मुहम्मद गौरी उससे डरता था। योजना के अनुसार उसे धनुषवाण दिया गया और डंके की चोट पर निशाना,वाण मारने को कहा, पृथ्वीराज चौहान तैयार हुआ तब चन्द्रवरदाई ने एक दोहा कहा कि
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण ।
ता ऊपर है मुहम्मद, मत चूके चौहान ॥ जैसे ही यह पृथ्वीराज ने सुना उसने निशाना साधा और वाण छोड़ दिया, मुहम्मद गौरी जो मंच पर बैठा था नीचे गिर पड़ा।
यह तो एक सत्य घटना भी है और कथानक है पर यह हमको भी इस मोह मद को पछाड़ने के लिए पुरुषार्थ जाग्रत करता है कि हम भी अपने ध्रुव तत्व सिद्ध पद का श्रद्धान करते हुये इस संसार से मुक्त होने के लिए यह मिथ्यात्व मोह मद को पछाड़ें। इस मोह मद ने भी अनादि से इस जीव को (हमें) भी ऐसा ही जकड़कर बांध रखा है, दर्शन मोह से हमारी आखें भी अन्धी हो रही हैं। हम भी पृथ्वीराज चौहान बनकर कि मैं अनन्त चतुष्टय का धारी सर्वज्ञ स्वभावी परमात्मा हूँ अपनी सत्ता शक्ति को जाग्रत करें और इस