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श्री कमलबत्तीसी जी
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९. संसारी व्यवहार का जब तक मूल्य महत्व अधिकार है। निज सत्ता स्वरूप को भूले, चलता मायाचार है ॥ अपनी सुरत नहीं रहती है, शुद्ध दृष्टि अभाव है । पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है |
१.
एक अखंड सदा अविनाशी, परम पारिणामिक भाव है । पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ।
१०. रूचि अनुगामी पुरूषार्थ होता, सब सिद्धांत का सार है। रूचि कहां की और कैसी है, इसका करो विचार है ॥ दृष्टि पलटते सृष्टि पलटे, फिर न कोई लगाव है । पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ।
२.
ममल स्वभाव में रहने लगना, मोक्षमार्ग पर चलना है। जीवन में सुख शांति आती, सब कर्मों का दलना है ॥ पर का लक्ष्य पक्ष न रहता, मिटता भेदभाव है । पर पर्याय पर दृष्टि न देना, ये ही ममल स्वभाव है ।
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५. मुनिराज
मै आतम शुद्धातम हूँ, परमातम सिद्ध समान हूँ । ज्ञायक ज्ञान स्वभावी चेतन, चिदानन्द भगवान हूँ ॥ ऐसे ज्ञान श्रद्धान सहित जो चढ़ता मुक्ति जहाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
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ज्ञान ध्यान में लीन सदा जो, तपश्चरण ही करता है। आर्त रौद्र ध्यानों को तजकर, धर्म शुक्ल ही धरता है ॥ जनरंजन मनरंजन से छूटा, छूटा सकल समाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है ॥ कलरंजन का काम नहीं है, न कोई मायाचारी है । सरल शान्त निस्पृह बालकवत्, छूटी दुनियांदारी है ॥ जग का सब अस्तित्व मिटाकर, बना वह जग का ताज है। ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
४. ध्रुव तत्व की लगन लगी है, मुक्ति श्री को पाना है। अब जग से कोई काम नहीं है, परमातम बन जाना है ॥ पाप परिग्रह छूट गये सब, छूटा सब भय लाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
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श्री कमलबत्तीसी जी
६. निस्पृह आकिंचन ब्रह्मचारी, उत्तम क्षमा का धारी है। अर्घावतारण असि प्रहार में, समता शांति बिहारी है ॥ परम अहिंसा धर्म का धारी, अनुपम शाह नवाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
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९.
आत्म ध्यान की साधना करता, परमानन्द में रहता है। शान्त शून्य निर्विकल्प स्वयं मैं, किसी से कुछ न कहता है । जग में क्या होता जाता है, किसी से कुछ न काज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है |
पंच महाव्रत पंच समितियां, तीन गुप्ति का पालक है। दस सम्यक्त पंच ज्ञान रत, महावीर सम बालक है । अभय अडोल अकंप स्वयं में, करता आतम काज है। ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है ॥
शुद्ध दृष्टि समदर्शी साधक, परम शान्त परमार्थी है । ऊँच नीच का भेदभाव तज, स्वयं बना आत्मार्थी है ॥ ध्यान समाधि ऐसी साधी, हिरण खुजाता खाज है । ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है ॥
दस चौदह परिग्रह का त्यागी, बन्धन रहित विरागी है। क्रियाकांड पुण्य को तजकर, धर्मध्यान अनुरागी है | नमन सदा ऐसे साधु को लिया स्वतंत्र स्वराज है ।
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ममल स्वभाव में रहने वाला, साधु वह मुनिराज है ॥
१०. कमल बत्तीसी जिसकी खिल गई, ज्ञानानंद में रहता है ।
पूर्व कर्म बंधोदय के, उपसर्ग परीषह सहता है ॥ तारण तरण भवोदधि तारक, सद्गुरू परम जहाज है। वीतराग निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु वह मुनिराज है ।