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श्री कमलबत्तीसी जी
py तारण वाणी के मार्मिक सूत्र
श्री कमलबत्तीसी जी गुरूदेव तारण स्वामी का योगदान महत्वपूर्ण है। इतने वर्षों के बाद भी इसमें रूढ़ता और परंपरावादिता नहीं है। वैचारिक ताजगी और निर्मलता आज भी इतने गौरव से विद्यमान है। इसकी चिंतन पद्धति सहिष्णु क्रांतिनिष्ठ और प्रगतिशील है और युगों-युगों तक सत्य एवं सम्यक्त्व के अन्वेषण में सहयोग करेगी। इसने धार्मिक अन्तर्विरोधों को सदैव एक रचनात्मक मोड़ दिया है और अपने स्वस्थ चिंतन प्रक्रिया के द्वारा क्षमादि धर्मों को स्थापित किया। तारण पंथ ने प्रत्येक जीव की भगवान बन सकने की लुप्त होती स्वाधीनता और प्रतिष्ठा की रक्षा की है. तथा समाज को एक वैज्ञानिक गति प्रदान की है। इसमें किसी का विरोध नहीं, किसी की अवहेलना, असम्मान या तिरस्कार नहीं, अपितु अनेकांत की उदारपद्धति का बीजारोपण है।
यह तारण पंथ का आत्मधर्म है, इसी कारण आज भी स्मरणीय है, प्रगतिशील है, चिर नूतन है। इसमें अंध विश्वासों और रूढ़ियों को कभी स्वीकार नहीं किया। वह सभी प्राणियों में परमात्मा की स्थिति मानता है और सत्य मार्ग का निरूपण करता है। परमात्म पद की प्राप्ति पुरूषार्थ साध्य है, किन्तु अप्राप्य नहीं है। १४ ग्रंथों में सर्वत्र लिखा है 'कथितं जिनेन्द्रैः यह मैं नहीं कहता, जिनेन्द्र भगवान का कथन है। समझो, देखो, विचार करो और स्वीकार करो। संपूर्ण विश्व उनका ऋणी है कि तारण स्वामी की वाणी ने सारे देश की स्वाधीनता को जगाया, यह स्वतंत्रता की घोषणा आप जैसे निस्पृही संत के ही वश की बात थी। इस दृष्टि से तारण स्वामी सबसे प्रथम युग चेतना के गायक तथा आध्यात्मिक क्रांतिकारी संत थे।
तारण स्वामी ने डंके की चोट पर भारत में ऐसा उत्थान का मार्ग बतलाया जिसकी आज हमारे देश को सबसे बड़ी जरूरत है। तारण स्वामी के तीर्थक्षेत्र वर्तमान में अपनी आध्यात्मिक गरिमा से भारत को गौरव प्रदान कर रहे हैं।
जन्म स्थल : पुष्पावती (बिलहरी),जिला-जबलपुर (म.प्र.) धर्म प्रचार केन्द्र : श्री सूखानिसई जी, जिला - दमोह (म.प्र.) तप एवं दीक्षा स्थली:श्री सेमरखेड़ीजी, जिला-विदिशा (म.प्र.) समाधि स्थल : श्री निसईजी (मल्हारगढ़), जिला-गुना (म.प्र.)
चेतना लक्षणो धर्मों।
आत्मा का चैतन्य लक्षण स्वभाव धर्म है। * आत्मा परमात्म तुल्यं ।
आत्मा परमात्मा के समान है।
अप्पच अप्प तार। ___अपना आत्मा ही स्वयं को तारने वाला है।
नीचे ऊंचदश्यते, तद नीच-निगोद खांडो दृश्यते। जो मानव दूसरों में नीच-ऊँचपन की दृष्टि रखता है, वह उस संकुचित विचार के फलस्वरूप नीच गति को प्राप्त करता है। इच्छा भोजन जसु उच्छाह, ऐसो सिद्ध स्वभाव । रूचिकर भोजन के प्रति जैसा उत्साह होता है, वैसा उत्साह अपने सिद्ध स्वभाव का जगाओ तो धर्म की प्राप्ति सहज होवे।
कम्म सहावं खिपन । ___कर्मों का स्वभाव क्षय होने का है। * विकहा अधर्म मूलस्य। विकथायें (व्यर्थ चर्चायें) अधर्म की जड़ हैं। चौरसी उत्पन्न उत्पन्न उत्पन्न अनंत भव । इस जीव ने चौरासी लाख योनियों में जन्म-मरण करते हुए अनंत भव बिताये हैं। मनुष्य जन्म में मुक्त होने का अवसर प्राप्त हुआ है। देहस्थोपि अदेहीच, ममात्मा परमात्म धुर्व । देह में स्थित होते हुए भी मेरा आत्मा अदेही परमात्म स्वरूप धुव है। अप्पा पलन पिच्छई, मिच्छा विट्ठी असहभावस्य। मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वादि अशुभ भावों को करता रहता है, आत्मा
और पर को नहीं पहिचानता। दसन विधि सविट्ट, कम्म मल मिच्छ दोष परिगलिय। जो जीव सम्यक् दर्शन की दृष्टि से देखता है उसके कर्म मल मिथ्यात्व आदि सकल दोष नष्ट हो जाते हैं। न्यानं तिलोय सारं, नायव्यो गुल पसाएन। सम्यक् ज्ञान ही तीन लोक में सार है, ऐसा श्री गुरू के उपदेश रूप प्रसाद से जानों।