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श्री कमलबत्तीसी जी
भजन - २० जग अंधियारो, धूरा को ढेर सारो, ज्ञान की ज्योति जगा लइयो।
मुक्ति को मारग बना लइयो। १. जीव जुदा और पुद्गल जुदा है । अपना आपहि आतम खुदा है ॥
भेदज्ञान प्रगटा लइयो...मुक्ति... जीव आत्मा सिद्ध स्वरूपी । पुद्गल शुद्ध परमाणु रूपी ॥
द्रव्य दृष्टि अपना लइयो...मुक्ति... ३. जग का परिणमन क्रमबद्ध निश्चित । टाले टले न कुछ भी किंचित् ॥
कर्ता भाव मिटा दइयो...मुक्ति... ४. पर्यायी परिणमन द्रव्य की छाया । भ्रम भ्रांति सब असत् है माया ॥
__ब्रह्म ज्ञान प्रगटा लइयो...मुक्ति... ५. आत्मानंद करो पुरूषार्थ ।
वीतराग बन चलो परमारथ ॥ राग में आग लगा दइयो...मुक्ति ...
श्री कमलबत्तीसी जी भजन - २२ ध्रुव से लागी नजरिया, आतम हो गई बबरिया। १.धुव सत्ता की महिमा निराली ।
इससे कटती कर्म की जाली ॥ मोक्ष पुरी की डगरिया....आतम.. २. पर पर्याय अब कछु न दिखावे । ध्रुव ही धुव की धूम मचावे ॥
रत्नत्रय की गगरिया....आतम.. ३. गुण पर्याय का भेद नहीं है ।
एक अखंड अभेद यही है ॥
ज्ञानानंद की नगरिया....आतम.. ४.धुव के आश्रय भव मिटता है ।
कर्म कषाय और राग पिटता है ॥ ब्रह्मानंद की बजरिया....आतम.... ५. अनन्त चतुष्टय की शक्ति जगती ।
के वल ज्ञान की ज्योति प्रगटती ॥ परमातम की संवरिया....आतम....
भजन - २१ गुरू तारण लगा रहे टेर, चलो चलें मुक्ति श्री॥ १. चारों गति में बहु दु:ख पाये, चौरासी लाख योनि फिर आये।
अब काहे कर रहे अबेर ....चलो चलें.... २. अपने अज्ञान से भूले स्वयं को, पर का कर्ता माना स्वयं को।
अपनी ही बुद्धि का फेर....चलो चलें.... ३. भेदज्ञान तत्व निर्णय करलो, जीवन में व्रत संयम धरलो।
जग जाओ अब तो शेर....चलो चलें... ४. तुम तो हो भगवान आत्मा, एक अखंड धुव शुद्धात्मा ।
परम ब्रह्म परमेश....चलो चलें.... ५. सत्श्रद्धान ज्ञान अब करलो. वीतराग साधु पद धर लो।
ब्रह्मानंद क्यों करते देर....चलो चलें....
भजन - २३ तुमको जगा रहे गुरू तारण, अब तो होश में आओ जी॥ १. कर श्रद्धान धरो उर दृढ़ता, मत भरमाओ जी ।
तुम तो अरूपी जीव तत्व हो, ममल स्वभाओ जी..तुमको... २. धन शरीर में राचि रहे हो, दुर्गति जाओ जी ।
साधु बन कर करो साधना, शुद्धातम ध्याओ जी..तुमको... ३. चारों गति में फिरे भटकते, दु:ख ही पाओ जी।
अपनी सुरत कभी नहीं आई, सबने समझायो जी..तुमको... ४. देख लो अपनो कोई नहीं है, काये मोह बढाओ जी।
ज्ञानानंद जगो अब जल्दी, मत समय गंवाओ जी..तुमको...