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श्री कमलबत्तीसी जी
३. अर्क विंद द्रव्य दृष्टि हो गई । सारे कर्म कषायें खो गई || राग में आग लगाओ रे... मनुआ... ४. मुक्ति श्री को आनंद लूटो । माया मोह को बंधन टूटो ॥ सत्पुरुषार्थ जगाओ रे... मनुआ... ५. देखलो सामने आनंद बरस रहो। परम शांति परमानंद बरस रहो ।
जय जयकार मचाओ रे... मनुआ...
भजन
१७
आतम ध्यान लगा लइयो, कह रही जिनवाणी । मुक्ति को मारग बना लइयो, कह रही जिनवाणी ॥ १. जग में अपना कोई नहीं है।
आंखो देखी बिल्कुल सही है ॥ आतम ज्ञान जगा लइयो... कह रही...
२. एक अखंड सदा अविनाशी ।
सिद्ध स्वरूपी ममल स्वभावी ॥ सम्यग्दर्शन जगा लइयो... कह रही....
३. क्रमबद्ध पर्याय सामने देखो।
अपना कोई कछु मत लेखो ॥ अपनी ही भूल मिटा लइयो... कह रही...
४. जिनवर की वाणी महासुखदानी।
छोड़ो मनमानी बनो सम्यग्ज्ञानी ॥ अनुभव प्रमाण बना लइयो... कह रही... ५. अपनी ही देखो अब अपनी सम्हालो । मोह राग छोड़ो निज आतम जगालो ॥ दृढ़ता पुरुषार्थ बढ़ा लइयो.... कह रही...
१०९
भजन १८
जगा रही जिनवाणी चेत जाओ भवि प्राणी ॥
१.
आतम राम को सुमरण कर लो । जीवन में व्रत संयम धर लो || बीत रही जिन्दगानी.... चेत जाओ.... २. पाप कषाय करो मत वीरा । नर भव है यह अधम शरीरा || मत करो अब मनमानी.... चेत जाओ....
३.
साथ में अपने कछु नहीं जावे । धन वैभव सब यही रह जावे ॥ पाप पुण्य की घानी.... चेत जाओ.... ४. जैसा करोगे खुद वैसा भरोगे । अपनी ही करनी से खुद ही मरोगे | दुनियां की यही कहानी.... चेत जाओ.... परमातम को ध्यान लगाओ । सद्गुरू चरण शरण में आओ । मिल जाये मुक्ति की रानी.... चेत जाओ....
५.
श्री कमलबत्तीसी जी
भजन- १९
जिनवर की वाणी अमोल रे, मनुआ सिद्धोहं बोल रे ॥
१. वस्तु स्वरूप का निर्णय कराया । द्रव्य स्वभाव का दर्शन कराया ||
२.
अंतर की दृष्टि खोल रे... मनुआ..... आतम शुद्धातम परमातम जानो । पुद्गल द्रव्य शुद्ध परमाणो ॥
भेद विज्ञान टटोल रे... मनुआ.....
३. कर्म कषायें सभी गल जायें । मोह राग फिर पास न आये ||
दृढ़ता से निज को तोल रे...मनुआ..... ४. ज्ञानानंद स्वभावी आतम । ध्रुव तत्व है निज शुद्धातम ॥
मौका मिला अनमोल रे... मनुआ.....