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श्री कमलबत्तीसी जी भजन - ११ हे आतम परमातम हो तुम, रत्नत्रय के धारी हो।
भूल गये हो निज सत्ता को, मोह ने मति यह मारी हो। १. अरस अरूपी ज्ञान चेतना, अनंत चतुष्टय धारी हो।
वीतराग सर्वज्ञ जिनेश्वर, शिवपुर के अधिकारी हो... २. पर द्रव्यों से सदा भिन्न तुम, एक अखंड अविकारी हो।
भाव-द्रव्य नो कर्मों की, सब सत्ता न्यारी-न्यारी हो... ३. निज स्वरूप को भूल गये हो, पुद्गल से की यारी हो।
इसीलिये तो भटक रहे हो, बनकर दीन दुखारी हो... ४. चेतो जागो उठो देख लो, तारण गुरू पुकारी हो।
मोह राग को तोड़ो छोड़ो, मानों बात हमारी हो.... सत्श्रद्धान ज्ञान अब करलो, करो चलने की तैयारी हो। पंच परमेष्ठी पद को धारो, ज्ञानानन्द हुश्यारी हो...
श्री कमलबत्तीसी जी
भजन -९ समदृष्टि समभाव में रहना, ज्ञानी का यह काम है।
ध्रुव तत्व यह सिद्ध स्वरूपी,ज्ञायक आतमराम है। टेक॥ १. जो कुछ होता आता जाता, सब पर्याय का काम है।
शुद्ध चिद्रूप चिदानन्द चेतन, ज्ञायक आतमराम है। २. छह द्रव्यों का योग निमित्त सब, भिन्न सदा निष्काम है।
एक अखंड अभेद अरूपी, ज्ञायक आतम राम है । त्रिकाली पर्याय क्रमबद्ध, अपने में अभिराम है। धौव्य धाम में रहने वाला, ज्ञायक आतम राम है । ज्ञानानन्द स्वभाव सदा ही, सहजानन्द सुख धाम है । रागादि भावों से भिन्न यह, ज्ञायक आतम राम है। अशरीरी अविकार निरंजन, सिद्ध पूर्ण निज धाम है। निरावरण चैतन्य, ज्योति यह, शाश्वत आतम राम है।
भजन - १० सिद्ध स्वरूपी शुद्धातम यह, ज्ञायक आतम राम है।
ध्रुव स्वभाव में रहना ही बस,ज्ञानी का यह काम है। टेक। १. पर द्रव्यों से पर भावों से, ज्ञायक सदैव न्यारा है ।
ज्ञेय ज्ञान ज्ञाता आदि, व्यवहार कथन यह सारा है ॥
निश्चय नय ही इष्ट हितकारी, और सभी बेकाम है.... २. ज्ञानमात्र चेतन सत्ता है, भेद विकल्प अज्ञान है ।
शुद्ध नय से देखने वाला, केवल सम्यक् ज्ञान है ।
धुव तत्व का लक्ष्य एक, कर देता काम तमाम है.... ३. कर्मो दायिक परिणमन सारा, भ्रम है माया जाल है ।
क्षण भंगुर सब नाशवान है, संसारी जंजाल है ॥
त्रिकाली परिणमन सब निश्चित, झलका केवलज्ञान है.... ४. भेद ज्ञान तत्व निर्णय द्वारा, स्व पर का श्रद्धान किया।
द्रव्य पर्याय को भली भाँति लख, वस्तु स्वरूप को जान लिया।
अब भ्रम का कोई काम नहीं है, देख लो यह ध्रुव धाम है.... ५. ज्ञानानन्द स्वभाव है अपना, सहजानन्द सुख धाम है। निजानन्द में रहो निरन्तर, ब्रह्मानन्द निज धाम है ॥ जग से अब क्या लेना देना, सबको राम राम है....
भजन - १२ शुद्धातम में रम जइयो, आतम वीतरागी। ध्रुव धाम में जम जइयो, आतम वीतरागी॥ १. बाहर तो जल रही राग की आगी।
जामें जल रहे सबरे रागी ॥ निर्ग्रन्थ दिगम्बर बन जइयो...आतम वीतरागी... २. देख लो कैसो आनन्द बरस रहो।
सुख शान्ति परमानन्द बरस रहो ॥ सिद्धोहं में रम जइयो...आतम वीतरागी... ३. सामने कोई कछु भी नहीं है।
द्रव्य दृष्टि सम दृष्टि सही है ॥ ध्यान समाधि में रम जइयो...आतम वीतरागी... ४. पुद्गल को परिणमन भ्रम भ्रांति माया।
मोह अज्ञान वश जीव भरमाया । परमात्म सत्ता में जम जइयो...आतम वीतरागी...